पंचांगुली देवी कालज्ञान की देवी हैं आप इसे महाकाली के रूप में जान सकते हैं। पञ्चागुली साधना को सिद्ध कर आप समाज कल्याण कर सकते हैं। ऐसा साधक अपने आपातकाल का ज्ञान भी पहले ही अर्जित कर सकता है। साधक किसी भी व्यक्ति के भविष्य के प्रत्येक क्षण को अक्षरशः जान सकता है, और घटित होने वाली दुर्घटनाओं की पूर्व जानकारी देकर उन्हें सचेत कर सकता है। इस साधना की उच्चतम स्थिति दिव्य दृष्टि सम्पन्न होना है। ज्ञान तो चैतन्य शक्ति के माध्यम से ही प्राप्त होता है, जिसे अपने अन्दर से प्रस्फुटित करना पड़ता है। यदि पंचांगुली मंत्र के साथ-साथ काल ज्ञान मंत्र को भी सिद्ध कर लिया जाय तो दिव्य दृष्टि प्राप्त की जा सकती है। दिव्य दृष्टि प्राप्त होने पर यह जरूरी नहीं कि जिस व्यक्ति का भूत-भविष्य जानना हो, वह सामने हो ही रहे। साधना विधान : (अ) : इस साधना को करने के लिए ‘ पंचांगुली यंत्र व कवच तथा ‘ प्राण प्रतिष्ठित रुद्राक्ष माला की आवश्यकता होती है। (आ) : यह साधना किसी भी शुक्ल पक्ष की द्वितीया,पंचमी, सप्तमी या पूर्णमासी को ब्रह्म मुहूर्त में करनी चाहिए। (इ): इक्कीस दिन की साधना को किसी एकांत पूजा स्थल म
देवो के देव महादेव को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं, अतिशीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त की इच्छा पूर्ण करने वाले शिव शंकर को भोलेनाथ भी कहते है, तंत्राधिपति बाबा महाकाल की अनेक तांत्रिक मंत्रों द्वारा की जाने वाली साधना भी देव पूजा ही कहलाती हैं । तंत्र मंत्रों में से एक है शिव शाबर मन्त्र, तंत्र शास्त्र के अनुसार इस मंत्र की साधना से भगवान महाकाल शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, और अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते है ।