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जुलाई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पञ्चांगुली साधना (2)

पंचांगुली देवी कालज्ञान की देवी हैं आप इसे महाकाली के रूप में जान सकते हैं। पञ्चागुली साधना को सिद्ध कर आप समाज कल्याण कर सकते हैं। ऐसा साधक अपने आपातकाल का ज्ञान भी पहले ही अर्जित कर सकता है। साधक किसी भी व्यक्ति के भविष्य के प्रत्येक क्षण को अक्षरशः जान सकता है, और घटित होने वाली दुर्घटनाओं की पूर्व जानकारी देकर उन्हें सचेत कर सकता है। इस साधना की उच्चतम स्थिति दिव्य दृष्टि सम्पन्न होना है। ज्ञान तो चैतन्य शक्ति के माध्यम से ही प्राप्त होता है, जिसे अपने अन्दर से प्रस्फुटित करना पड़ता है। यदि पंचांगुली मंत्र के साथ-साथ काल ज्ञान मंत्र को भी सिद्ध कर लिया जाय तो दिव्य दृष्टि प्राप्त की जा सकती है। दिव्य दृष्टि प्राप्त होने पर यह जरूरी नहीं कि जिस व्यक्ति का भूत-भविष्य जानना हो, वह सामने हो ही रहे।  साधना विधान : (अ) : इस साधना को करने के लिए ‘ पंचांगुली यंत्र व कवच तथा ‘ प्राण प्रतिष्ठित रुद्राक्ष माला की आवश्यकता होती है। (आ) : यह साधना किसी भी शुक्ल पक्ष की द्वितीया,पंचमी, सप्तमी या पूर्णमासी को ब्रह्म मुहूर्त में  करनी चाहिए। (इ): इक्कीस दिन की साधना  को किसी एकांत पूजा स्थल म

शिव खोड़ी की गुफाएं।

शिव खोड़ी की गुफाएं। 〰️〰️🌼🌼🌼〰️〰️ शिव खोड़ी शिवालिक पर्वत शृंखला में एक प्राकृतिक गुफा है, जिसमें प्रकृति-निर्मित शिव-लिंग विद्यमान है। शिव खोड़ी तीर्थ स्थल पर महाशिवरात्रि के दिन बहुत बड़ा मेला आयोजित होता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से यहां आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और आयोजित इस मेले में शामिल होते हैं। शिव खोड़ी की यात्रा बारह महीने चलती है। अति प्राचीन मंदिरों के कई अवशेष अब भी इस क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। शिव खोड़ी शिवभक्तों के लिए एक महान तीर्थ स्थल है। शिव खोड़ी शिव तीर्थ का कोई प्रामाणिक इतिहास आज तक उपलब्ध नहीं हो पाया है। लोक श्रुतियों में कहा गया है कि स्यालकोट (वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान में है) के राजा सालवाहन ने शिव खोड़ी में शिवलिंग के दर्शन किए थे और इस क्षेत्र में कई मंदिर भी निर्माण करवाए थे, जो बाद में सालवाहन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस गुफा में दो कक्ष हैं। बाहरी कक्ष कुछ बड़ा है, लेकिन भीतरी कक्ष छोटा है। बाहर वाले कक्ष से भीतरी कक्ष में जाने का रास्ता कुछ तंग और कम ऊंचाई वाला है जहां से झुक कर गुजरना पड़ता है। आगे चलकर यह र

ताम्बेश्वरनाथ

बाबा तामेश्वरनाथ धाम इस शिवलिंग की कुंती ने की थी सबसे पहले पूजा? आज हम आपको एक ऐसे प्राचीन मंदिर के बारे में बताने जा रहा है, जहां पर पांडवों की माता कुंती ने सबसे पहले पूजा की थी। गोरखपुर से 60 किमी दूर संतकबीरनगर जिले के खलीलाबाद में बाबा तामेश्वरनाथ का धाम बसा है। मान्यता है कि जंगल के बीच बसा ये मंदिर सभी की मनोकामनाएं पूरी करता है। बाबा के दर्शन मात्र से ही भक्तों के दुख दूर हो जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान के इस जगह पर उत्पत्ति के पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। बाबा तामेश्वरनाथ शिवलिंग। कुंती ने की थी सबसे पहले शिवलिंग की पूजा!!!!!!!! द्वापर युग में पांडवों को लाक्षागृह में जलाकर मारने की कोशिश नाकामयाब हो गई थी। पांडव अपना अज्ञातवास पूरा करने के लिए विराटनगर जा रहे थे। तभी यहां पर आकर उन्‍होंने आराम किया था। पांडवों की मां कुंती महादेव की भक्त थीं। उन्होंने यहां पर प्राकृतिक रूप से निकले शिवलिंग की पूजा की और बेटों के लिए प्रार्थना की। तभी से यहां पर भगवान तामेश्वर की पूजा-अर्चना की जाती है, जो आज भी जारी है। स्थानीय निवासी रामेश्वर ने बताया कि खलीलाबाद के मुस्लिम शासक

चंद्रशेखर स्तोत्र

ॐ नमः शिवाय चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहि माम् । चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम् ।। 1 ।। रत्नसानुशरासनं रजतादिशृङ्गनिकेतनं सिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युताननसायकम् । क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदिवालयैरभिवन्दितं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ।। 2 ।। पञ्चपादपपुष्पगन्धपदाम्बुजद्वयशोभितं भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम् । भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशनं भवमव्ययं चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम् ।। 3 ।। मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं पङ्कजासनपद्मलोचनपूजिताङ्घ्रिसरोरुहम् । देवसिन्धुतरङ्गसीकरसिक्तशुभ्रजटाधरं चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम् ।। 4 ।। यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्गविभूषणं शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम् । क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम् ।। 5 ।। कुण्डलीकृतकुण्डलेश्वरकुण्डलं वृषवाहनं नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् । अन्धकान्धकामाश्रितामरपादपं शमनान्तकं चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम् ।। 6 ।। भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं दक्षयज्ञविनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिवि

श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्

श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम् 〰️〰️🔸〰️🔸〰️〰️ शिव महिम्न: स्तोत्रम शिव भक्तों का एक प्रिय मंत्र है| ४३ क्षन्दो के इस स्तोत्र में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है| स्तोत्र का सृजन एक अनोखे असाधारण परिपेक्ष में किया गया था तथा शिव को प्रसन्न कर के उनसे क्षमा प्राप्ति की गई थी | कथा कुछ इस प्रकार है … एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था| वो परं शिव भक्त था| उसने एक अद्भुत सुंदर बागा का निर्माण करवाया| जिसमे विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे| प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे। फिर एक दिन … पुष्पदंत नामक के गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहा था| उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया| मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया| अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए | पर ये तो आरम्भ मात्र था … बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्यक दिन पुष्प की चोरी करने लगा| इस रहश्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे| पुष्पदंत अपने दिव्या शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहा। और फिर … राजा चित्ररथ ने एक अनोखा समाधान निकाला| उन्होंने शि