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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तिलक क्यों करते है

तिलक का धार्मिक वैज्ञानिक आधार  धर्मशास्त्रों के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है* तो सभी पाप नष्ट हो जाते है सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं ।  #शिव चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है,  व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं। तिलक कई प्रकार के होते हैं - मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि।  यदि वार अनुसार तिलक धारण किया जाए तो उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है। तिलक किस दिन किसका लगाये !!  #सोमवार = सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं।चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं। #मंगलवार = मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है।मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्

अंगारक योग

जन्म कुंडली में क्या होता है अंगारक योग और क्या है उसके प्रभाव वैदिक ज्योतिष के अनुसार अंगारक योग का निर्माण किसी भी कुंडली में उस स्थिति में होता है, जब एक ही भाव में मंगल ग्रह के साथ राहु अथवा केतु उपस्थित हों। इसके अलावा, यदि मंगल का दृष्टि सम्बन्ध भी राहु अथवा केतु से हो रहा हो तो भी इस योग का निर्माण हो सकता है। आमतौर पर अंगारक योग को एक बुरा और अशुभ योग माना जाता है और इससे जीवन में समस्याओं की बढ़ोतरी होती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार अंगारक दोष बुरे योगों में सम्मिलित किया गया है। अंगारक की प्रकृति से समझें तो अंगारे जैसा फल देने वाला योग बनता है। यह जिस भी भाव में बनता है, उस भाव के कारकत्वों को नष्ट करने की क्षमता रखता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन आते हैं, और उसमें गुस्से की अधिकता हो सकती है। यह योग व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है और वह अपने क्रोध तथा दुर्घटना आदि के कारण समस्याओं को निमंत्रण देता है। मंगल को भाई का कारक कहा जाता है, इसलिए इस योग के प्रभाव से कई बार व्यक्ति की अपने भाइयों से नहीं बनती तथा दुर्घटना होने की संभावना

असितांग भैरव उपासना

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  असितांग भैरव को भैरव का उग्र रूप माना गया है | ऐसा माना गया है कि इस रूप में भैरव की उपासना आपके भयंकर से भयंकर रोग को भी दूर कर सकती है |कलियुग के समय में भैरव उपासना विशेष रूप से फल प्रदान करने वाली मानी गयी है | मंत्र द्वारा असितांग भैरव की एक रात्रि की साधना आपके असाध्य रोग में लाभ प्रदान करने वाली है | जो लोग लम्बे समय से किसी रोग से पीड़ित है और लाख यत्न के बाद भी उनका रोग ठीक नहीं हो पा रहा है तो असितांग भैरव मंत्र द्वारा रात्रि में नीचे दिए गये मंत्र का जप करना चाहिए | असितांग भैरव मंत्र : ||  ॐ भं भं सः असितांगाये नमः || मंत्र जप विधि : सामान्य रूप से भैरव के मंत्रों का जप रात्रि में करने का प्रावधान है | असितांग भैरव के इस मंत्र का जप भी रात्रि 9 बजे के बाद ही किया जाना चाहिए | मंत्र जप के लिए मंगलवार, शनिवार और रविवार के दिनों में से किसी भी एक दिन का चुनाव किया जा सकता है | पूर्व दिशा की तरफ एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उसपर सिद्ध भैरव यन्त्र व असितांग भैरव की फोटो की स्थापना करें

मानसिक रोग का उपाय

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  मन अशांत होने के पीछे चन्द्रमा और राहू गृह का प्रभाव रहता है |  जिस जातक को मन से जुड़ी व्याधियां होने लगी है तो समझ जाये उनकी कुंडली में चंद्रमा और राहू ग्रह द्वारा शुभ फल प्राप्त नहीं हो रहा है | चन्द्र देव के इस मंत्र का प्रतिदिन उच्चारण करने से मन को शांति मिलती है |  मंत्र इस प्रकार है : ॐ चं चन्द्राय नमः  चन्द्र देव के यंत्र को भोजपत्र पर विधिवत निर्मित कर तावीज या लॉकेट आदि में डालकर गले में धारण करने से मानसिक व्याधि में लाभ मिलता है |  चन्द्र यंत्र लॉकेट को मंत्र शक्ति द्वारा सिद्ध करने के उपरांत ही गले में धारण करना चाहिए | सोमवार के दिन शिव मंदिर जाकर शिवलिंग पूजा करने से भी चन्द्र दोष दूर होकर मन को शांति मिलती है | गुरुवार के दिन 7 तरह का सवा 5 किलो अनाज में थोडा सरसों का तेल मिलाकर इसमें एक किलो गुड मिलाकर पीड़ित जातक के ऊपर से 7 बार वार कर गाय के वयस्क बछड़े को खिलाये | ऐसा आप लगातार 7 गुरुवार को करें | ऐसा करने से राहू और शनि दोष में राहत मिलती है | इस प्रयोग को करने से आप अपने

इक्षा पूर्ति भैरव साधना

नमस्कार दोस्तों आपका एक बार फिर से धर्म रहस्य में स्वागत है आज मैं आप लोगों के लिए कामना पूरक साधना ले कर रहा आया हूं l कामनाओं की पूर्ति के लिए इस साधना को बहुत ही अच्छा माना जाता है l पुराने समय में यह बहुत बात प्रचलित रही है कि इस मंत्र की सिद्धि जिसे हो जाती है उसकी निश्चित रूप से हर मनोकामना पूरी होती है। अगर लंबे समय तक जाप किया जाए तो उसको सिद्धि भी प्राप्ति हो सकती है ।बहुत ताकतवर वह व्यक्ति होता चला जाता है । यह एक शाबर मंत्र है , शाबर मंत्र के लिए कहा जाता है कि साल में एक बार अवश्य मंत्रों को आवश्यक रूप से जगा देना चाहिए, यानी इन मंत्रों को जीवित करना पड़ता है । ये आवश्यक हैं इसलिए ग्रहण काल में साबर मंत्र नष्ट होने लगते हैं तो इसलिए उसी ग्रहण काल में पढकर दोबारा जगाना होता है यानी कि एक ही दिन की साधना से कोई भी साबर मंत्र फिर से जाग जाता है। तो जब भी कभी ग्रहण काल पड़ता है तो आपने कोई भी साबर मंत्र की साधना की है तो यानि पहले 1 साल के अंदर की हो तो आप ग्रहण काल में फिर से जो भी उसका विधि विधान हो उसके अनुरूप सिद्ध कर सकते हैं । ग्रहण काल में अगर आप उसको जपते हैं और हवन कर

कालभैरव सवारी (शाबर मंत्र विद्या).

आज मै आपको "कालभैरव" भगवान का सवारी शरीर मे बुलाने का गोपनीय विधी बता रहा हू,जो तंत्र के साथ शाबर मंत्र से नाथमुखी प्राप्त विधान है l सवारी आपको तो पता ही होगा क्युके आप लोग अक्सर ये देखते होगे कुछ लोगो मे भैरव का सवारी हनुमान का सवारी महाकाली जी का सवारी आता है और सवारी आने पर "भगत" (जिस इंसान मे सवारी आता है उसको भगत कहा जाता है ) को जो कुछ पुछा जाये वह उसका सटिक जवाब देता है साथ मे सभी कष्ट, पिडा, बाधा, रोग, समस्याओ से मुक्ती दिलवाता है l आप भी सवारी को अपने शरीर मे बुलाकर जनकल्याण कर सकते है और येसा मत सोचिये के जनकल्याण करेगे तो घर का आर्थिक स्थिति कैसे मजबुत होगा ? आप थोडा ध्यान दे क्युके सुशील नरोले आपको गलत सलाह नही देगा,जब आप जनकल्याण करेगे तो लोगो का भला होगा और जब लोगो का भला होगा तो वही लोग आपको कई रुपया दान मे देगे l किसिसे रुपया माँगना गलत है परंतु दान प्राप्त करना गलत नही है मित्रो,येसा होता तो आप उन लोगो को देखिये जिनमे सवारी आता है l भैरव को भगवान शंकर का ही अवतार माना गया है, शिव महापुराण में बताया गया है- "भैरवः पूर्णरूपो हि शंकरः परात्मनः। म

त्रिकाल दर्शन साधना

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  यह विधि अधिकारी गुरु से प्राप्त करने के पश्चात ही आरम्भ करे अथवा लाभ के स्थान पर हानि भी उठाना पड़ सकता है  । कुछ विशेष नियम कीलित है । साधना त्रिकाल-दर्शक गौरी-शिव मन्त्र विनियोगः- अनयोः शक्ति-शिव-मन्त्रयोः श्री दक्षिणामूर्ति ऋषिः, गायत्र्यनुष्टुभौ छन्दसी, गौरी परमेश्वरी सर्वज्ञः शिवश्च देवते, मम त्रिकाल-दर्शक-ज्योतिश्शास्त्र-ज्ञान-प्राप्तये जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः- श्री दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि, गायत्र्यनुष्टुभौ छन्दोभ्यां नमः मुखे, गौरी परमेश्वरी सर्वज्ञः शिवश्च देवताभ्यां नमः हृदि, मम त्रिकाल-दर्शक-ज्योतिश्शास्त्र-ज्ञान-प्राप्तये जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ। कर-न्यास (अंग-न्यास)ः- ऐं अंगुष्ठभ्यां नमः (हृदयाय नमः), ऐं तर्जनीभ्यां नमः (शिरसे स्वाहा), ऐं मध्यमाभ्यां नमः (शिखायै वषट्), ऐं अनामिकाभ्यां हुं (कवचाय हुं), ऐं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् (नेत्र त्रयाय वौषट्), ऐं करतल-करपृष्ठाभ्यां फट् (अस्त्राय फट्)। ध्यानः- उद्यानस्यैक-वृक्षाधः, परे हैमवते द्विज- क्रीडन्तीं भूषितां गौरीं, शुक्ल-वस

गुरु प्राप्ति साधना

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  गुरु प्राप्ति साधना 🥀 कुछ लोग देवी देवताओं को , सिद्धात्माओ को गुरु मान कर साधनाये करते है । अछि बात है गुरु मंडल की शक्तियां भी सहायता और मार्गदर्शमकरती है पर एक सीमा तक । और वो भी मनुष्य में इतनी योग्यता हो कि दिव्य संकेतो और संदेशो को समझ सके तब की बात है ।  वैदिक काल से ही देहधारी गुरु का महत्व बताया गया है । भू लोक पर जन्म लेने वाले हर मनुष्य के लिए कहा जाता है - गुरु बिन गति नही रे प्यारे । कोई भी जिसने इस भू लोक पर जन्म लिया है उसका उद्धार गुरु ही कर सकता है । बड़े बड़े सिद्ध हुए चाहे भगवान राम , भगवाम कृष्ण , गुरु गोरखनाथ इन्होंने में भी गुरु धारण किया जबकि यह तो स्वयं भगवान के अवतार थे इन्हें क्या आवश्यकता थी गुरु धारण करने की ?  बाकी सबकी अपनी अपनी सोच है जिसे खुदके अलावा कोई नही बदल सकता है ।  जिनके गुरु नही है उन्हें गुरु प्राप्ति के लिए साधना नीचे दे रहा हूँ करके लाभ उठाएं ।  मंत्र - ॐ गुं गुरुदेव हुं फट सामग्री - सभी चीजें जहां तक संभव हो स्वेत रंग की हो । पुष्प जल , चावल , चन्

गोगा जाहरवीर की जड़ी

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  गोगा जाहरवीर जी की छड़ी का बहुत महत्त्व होता है और जो साधक छड़ी की साधना नहीं करता उसकी साधना अधूरी ही मानी जाती है क्योंकि मान्यता के अनुसार जाहरवीर जी के वीर छड़ी में निवास करते है !  सिद्ध छड़ी पर नाहरसिंह वीर , सावल सिंह वीर , रख्ता वीर आदि अनेकों वीरों का पहरा रहता है !छड़ी लोहे की सांकले होती है जिसपर एक मुठा लगा होता है ! जब तक गोगा जाहरवीर जी की माड़ी में अथवा उनके जागरण में छड़ी नहीं होती तब तक वीर हाजिर नहीं होते , ऐसी प्राचीन मान्यता है ! ठीक इसी प्रकार जब तक गोगा जाहरवीर जी की माड़ी अथवा जागरण में चिमटा नहीं होता तब तक गुरु गोरखनाथ सहित नवनाथ हाजिर नहीं होते ! ड़ी अक्सर घर में ही रखी जाती है और उसकी पूजा की जाती है ! केवल सावन और भादो के महीने में छड़ी निकाली जाती है और छड़ी को नगर में फेरी लगवाई जाती है , इससे नगर में आने वाले सभी संकट शांत हो जाते है ! जाहरवीर के भक्त दाहिने कन्धे पर छड़ी रखकर फेरी लगवाते है ! छड़ी को अक्सर लाल अथवा भगवे रंग के वस्त्र पर रखा जाता है !  यदि किसी पर भूत प्रे

देह रक्षा

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  देह रक्षा शाबर मंत्र  ~~~~~ सिद्ध करने की विधिः निम्न मन्त्रों को किसी भी शनिवार या मंगलवार को हनुमान जी विषयक नियमो का पालन करके 3 माला प्रतिदिन  11 दिन तक करें। आवश्यकः माला जप रुद्राक्ष की माला से करें। आसन लाल, तेल का दिया, लाल वस्त्र, सिंदूर का टीका, एवं हनुमान जी को दो लड्डू चढ़ाएं उपयोग: इनको सिद्ध कर ले फिर 9 या 11 बार पढकर  क) अपने शरीर पर फूंक मारे व दोनों हाथो को पुरे शरीर पर फेरें ! इससे आपकी रक्षा होगी कोई भी शक्ति आप को नुकसान नही पहुंचाएगी। ख) आधा गिलास जल में 11 बार फूंक मार कर जल को पीये, पूर्ण रुप से सुरक्षा शरीर की बनी रहेगी। ( मंत्र को बोलकर गिलास में फूंक लगाएं यह प्रक्रिया 11 बार अपनाएं इस तरह जल अभिमंत्रित हो जाएगा) मंत्रः ~~ १) ।। उत्तर बांधो, दक्खिन बांधो, बांधो मरी मसानी , डायन भूत के गुण बांधो, बांधो कुल परिवार , नाटक बांधो, चाटक बांधो, बांधो भुइयां बैताल ! नजर गुजर देह बांधो, राम दुहाई फेरों वाचा ,शब्द सांचा पिंड काचा, फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ।। २)  ।।जल बांधो, थल

द्रिक सिद्धान्त

*दृक् सिद्ध ज्योतिष* इस सम्बन्ध में कई शब्द हैं-दृक् तुल्य, दृग्गणित, दृक् सिद्ध पञ्चाङ्ग। सिद्धान्त दर्पण के प्रति अध्याय के अन्त में उस पुस्तक के दो उद्देश्य लिखे हैं-बालबोध (छात्रों के लिए पाठ्य पुस्तक), तथा गणित-अक्षि सिद्धि (दृक् तुल्यता) गणित अक्षि सिद्धि के कई अर्थ हैं- (१) हर विज्ञान का उद्देश्य है दृश्य जगत् की व्याख्या। कई घतनाओं को देखने के बाद उनके नियम बनाये जाते हैं। भविष्य में यदि उनमें कुछ त्रुटि दीखती है, तो नियमों में संशोधन किये जाते हैं।नियमों को गण्तित की भाषा में लिखते हैं। उनकी माप प्रयोग द्वारा होती है, जहां प्रयोग सम्भव नहीं वहां पूर्व निर्धारित सिद्धान्तों के अनुसार गणना की जाती है। जब गणना में अशुद्धि होती है। अविद्या के २ अर्थ हैं-विद्या का अभाव, या अपरा विद्या (वर्गीकरण, विज्ञान)। दोनों अर्थों में इसके ५ अंग हैं-अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश। अपरा विद्या अर्थ में अर्थ हैं-१. अविद्या = विद्या या विषय के वर्ग, २. अस्मिता-हर वर्ग का परिचय या परिभाषा, ३. राग-वर्ग के भीतर की वस्तुओं में समानता, ४. द्वेष-अन्य वर्गों से अन्तर, ५. अभिनिवेश-सिद्धान्त स्थिर