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अमोघ शिवकवच

*अमोघ शिव कवच प्रयोग* सर्व साधारण व समस्त आस्तिक भक्तो के लाभार्थ अति प्राचीन सिद्धीप्रद अमोघ शिव कवच प्रयोग दे रहा हूँ ।इसके शुद्ध सत्य अनुष्ठान से भयंकर से भयंकर विपत्ति से छुटकारा मिल जाता है और भगवान आशुतोष की कृपा हो जाती है। *अथ विनियोग:*   अस्य श्री शिव कवच स्त्रोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टुप छंद:, श्री सदाशिव रुद्रो देवता, ह्रीं शक्ति:, रं कीलकम, श्रीं ह्रीं क्लीं बीजं, श्री सदाशिव प्रीत्यर्थे शिवकवच स्त्रोत्र जपे विनियोग:। *अथ न्यास:*  (पहले सभी मंत्रो को बोलकर क्रम से करन्यास करे। तदुपरांत इन्ही मंत्रो से अंगन्यास करे।)  *करन्यास*   ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ  ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम:। ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ  नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने तर्जनीभ्याम नम:। ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ  मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने मध्यमाभ्याम नम:। ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्याम नम:।  ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कनिष्ठिकाभ्याम नम:।  ॐ नम

स्वस्तिक निर्णय

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● स्वस्तिक निर्णय पूर्व संकलित लेख💐🙏🏼 ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मुख्य द्वार पर श्रीगणेश का चित्र या स्वस्तिक बनाने से घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है।  ऐसे घर में हमेशा गणेशजी कृपा रहती है और धन-धान्य की कमी नहीं होती। साथ ही स्वस्तिक धनात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। इसका प्रयोग रसोईघर, तिजोरी, स्टोर, प्रवेशद्वार, मकान, दुकान, पूजास्थल एवं कार्यालय में किया जाता है। यह तनाव, रोग, क्लेश, निर्धनता एवं शत्रुता से मुक्ति दिलाता है। वास्तु अनुसार दिशाएं दस मानी जाती हैं लेकिन मुख्य दिशाएं पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण ये चार ही हैं, इन चारों दिशाओं के अधिपति देवता अग्नि, इंद्र, वरुण एवं सोम माने जाते हैं। दिशाओं के देवताओं के साथ-साथ सप्तऋषियों की हिंदूमें बहुत मान्यता है। इन सभी की पूजा और आशीर्वाद के लिये स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है। स्वस्तिक की संरचना भी सभी दिशाओं के महत्व को दर्शाती है। इसलिये इसे दिशाओं का प्

वेदसार शिवस्तव:

|| ॐ नम: शिवाय || आदिगुरू श्री शंकराचार्य द्वारा विरचित वेदसार शिवस्तव: पशूनां पतिं पापनाशं परेशं,गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम् | जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं,महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ||१|| महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं,विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम् | विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं,सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्  ||२|| गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं, गवेन्द्राधिरूढं गणातीतरूपम् | भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं,भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ||३|| शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले,महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्  | त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः,प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप  ||४|| परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं, निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम् | यतो जायते पाल्यते येन विश्वं,तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ||५|| न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाश आस्ते न तन्द्रा न निद्रा | न गृष्मो न शीतो न देशो न वेषो,न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ||६|| अजं शाश्वतं कारणं कारणानां, शिवं केवलं भासकं भासकानाम् | तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं,प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ||७|| नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते,नमस्