श्रीराम! स्त्री-- *शुक्रशोणितसङ्घाताश्रयत्वम् स्त्रीत्वम्।* #स्त्यै शब्दसङ्घातयो: धातो: #स्तायतेर्ड्रट् इत्यनेन #ड्रट् प्रत्ययः। अनु.लोपः। स्त्यै + र, डित्त्वात् प्रकृते: टेर्लोपः -- स्त्य् र, #लोपो_व्योर्वलि इति य् लोपः--स्त्र। पुनः स्त्रीत्वविवक्षायाम् टित्त्वाद् #ङीप्-- स्त्र+ङीप्, अनु.लोपः। #यस्येति_च" इति अल्लोपः-- स्त्री। अस्य व्युत्पत्ति:-- स्त्यायतः सङ्गते भवतः शुक्रशोणिते अस्याम् इति स्त्री। --जिसमें शुक्र शोणित (रज:) सङ्घात ( मिश्रण/मेल) को प्राप्त होते हैं, वह स्त्री है। यहाँ प्रश्न यह उठता है-- जिन में शुक्र शोणित का मेल गर्भाधान) नहीं होता, अविवाहित रहने वालीं या साध्वियाँ, क्या वे स्त्रियाँ नहीं हैं? अथवा यह व्युत्पत्ति ही त्रुटित है? या कोई और सङ्गति है? यहाँ यह ध्यातव्य है कि किसी रोग व्याधि आदि उपाधि/निमित्तसे यदि किन्हींमें सङ्घात नहीं होता है, तो उनके विषय में यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ अव्याप्त नहीं होता। चाहे साध्वियाँ हों, ब्रह्मचारिणियाँ, हों या अन्य कोई, वस्तुतः सभी स्त्रियाँ ही हैं। #शुक्रशोणितसङ्घाताश्रयतायोग्यत्वम्" इस प्र
देवो के देव महादेव को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं, अतिशीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त की इच्छा पूर्ण करने वाले शिव शंकर को भोलेनाथ भी कहते है, तंत्राधिपति बाबा महाकाल की अनेक तांत्रिक मंत्रों द्वारा की जाने वाली साधना भी देव पूजा ही कहलाती हैं । तंत्र मंत्रों में से एक है शिव शाबर मन्त्र, तंत्र शास्त्र के अनुसार इस मंत्र की साधना से भगवान महाकाल शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, और अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते है ।