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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गायत्री

गायत्री गुप्त मन्त्र और सम्पुट  〰〰🌼〰〰🌼〰〰 गायत्री मन्त्र के साथ कौन सा सम्पुट लगाने पर क्या फल मिलता है!! ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ श्रीं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ क्लीं धियो यो न: प्रचोदयात ॐ नम:! ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ श्रीं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ क्लीं धियो यो न: प्रचोदयात ॐ नम:! ॐ भूर्भुव: स्व : ॐ ऐं तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ क्लीं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ सौ: धियो यो न: प्रचोदयात ॐ नम:! ॐ श्रीं ह्रीं ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ ऐं ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ क्लीं ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ सौ: ॐ धियो यो न: प्रचोदयात ॐ ह्रीं श्रीं ॐ!! गायत्री जपने का अधिकार जिसे नहीं है वे निचे लिखे मन्त्र का जप करें! ह्रीं यो देव: सविताSस्माकं मन: प्राणेन्द्रियक्रिया:! प्रचोदयति तदभर्गं वरेण्यं समुपास्महे !! सम्पुट प्रयोग 〰〰〰〰 गायत्री मन्त्र के आसपास कुछ बीज मन्त्रों का सम्पुट लगाने का भी विधान है जिनसे विशिष्ट कार्यों की सिद्धि होती है ! बीज मन्त्र इस प्रकार हैं---- १- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं --- का सम्पुट लगाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है! २- ॐ ऐं क्लीं सौ:-- का सम्पुट लगाने से विद्या प्राप्

विष्णु सहस्रनाम पाठ विधि शाप बिमोचन

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------   विष्णुसहस्त्र नाम पाठ विधी |  मित्रों शाप विमोचन किये विष्णुसहस्त्र पाठ करने से उसका कोई परिणाम प्राप्त नहीं होता है | क्युकी यह पाठ महादेव द्वारा शापित है इसीलिए सबसे पहले इसे शाप में से मुक्त करना बहुत ही जरुरी है |  इस स्तोत्र के महदेवऋषि है ,अनुष्टुप छंद है,रूद्र अनुग्रह शक्ति है | विष्णुसहस्त्र शाप विमोचन  शापविमोचन क्यों जरुरी है ? विष्णोः सहस्त्रनाम्नां यो न कृत्वा शापमोचनम |  पठेच्छुभानि सर्वाणि स्तुस्तस्य निष्फलानि तुम ||  अर्थात विष्णुसहस्त्र पाठ शापविमोचन के बिना अगर किया जाए तो वो निष्फल हो जाता है |  रुद्राशाप विमोचन विधी : सर्वप्रथम विनियोग करे |  विनियोग : अस्य श्री विष्णोर्दिव्यसहस्त्रनाम्नां रुद्रशापविमोचन मंत्रस्य महादेवऋषिः | अनुष्टुप छन्दः | श्री रुद्रानुग्रहशक्तिर्देवताः | सुरेशः शरणंशर्मेति बीजं | अनन्तो हुत भुग भोक्तेति शक्तिः | सुरेश्वरायेति कीलकं | रुद्रशाप विमोचने विनियोगः |  उसके पश्चात् न्यास का विधान है सर्वप्रथम करन्यास कर बाद में हृदयादि न्यास का विधान करना ह

मरण पंचक शांति कर्म

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------   पंचक मरण शान्ति           पंचक में मृत्यु होने पर वंश के लिए अनिष्ट कारक होता है इसलिए जहाँ पर शव जलाना हो वहां भूमि शुद्धकर कुश से मनुष्याकृति की पाँच प्रतिमा बनाकर यव के आटे से उनका लेपन कर, अपसव्य हो पूजन संकल्प करें- अद्योत्यादि॰ अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य धनिष्ठादि पंचकेभरण- सूचितवंशानिष्ट विनाशार्थं पंचकशान्ति करिष्ये। प्रतिमाओं को स्थापित कर पूजन करे - 1. प्रेतवाहाय नमः।।                    2. प्रेतसखायै नमः।। 3. प्रेतपाय नमः।।                        4. प्रेतभूमिपाय नमः।। 5. प्रेत हत्र्रो नमः।। नाम मंत्र से प्रत्येक प्रतिमा को गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक और नैवेद्य से पूजन कर दाह से पहले शव के ऊपर रख दें- पहली प्रतिमा-शिर पर। दूसरी दक्षिण कुक्षी पर। तीसरी बांयी कुक्षी पर। चैथी नाभी के ऊपर। पांचवी पैरों के ऊपर रख घी को आहुति दें। 1- प्रेतवाहाय स्वाहा।।     2- प्रेतसखायै स्वाहा।। 3- प्रेतपाय स्वाहा।।         4- प्रेत भूमिपाय स्वाहा।। 5- प्रेत हत्र्रो स्वाहा।। उपर्युक्त आहुति देकर पूर

भगवान शिव के 35 रहस्य

Aachary Rudreshwaran: ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  *#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!* भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है। *🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है। *🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था। *🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है। *🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं। *🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की

हिन्दू धर्म की महत्वपूर्ण बातें

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  #हिन्दू_धर्म_की_10_महत्वपूर्ण_बातें  १...10 #ध्वनियां :  1.घंटी, 2.शंख, 3.बांसुरी, 4.वीणा, 5. मंजीरा, 6.करतल, 7.बीन (पुंगी), 8.ढोल, 9.नगाड़ा  10.मृदंग २,,,,10 #कर्तव्य:- 1. संध्यावंदन, 2. व्रत, 3. तीर्थ, 4. उत्सव, 5. दान, 6. सेवा 7. संस्कार, 8. यज्ञ, 9. वेदपाठ, 10. धर्म प्रचार। आओ जानते हैं इन सभी को विस्तार से। ३,,,,10 #दिशाएं : दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो। एक मध्य दिशा भी होती है। इस तरह कुल मिलाकर 11 दिशाएं हुईं। ४....10 #दिग्पाल : 10 दिशाओं के 10 दिग्पाल अर्थात द्वारपाल होते हैं या देवता होते हैं। उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत। ५.….10 #देवीय_आत्मा : 1.कामधेनु गाय, 2.गरुढ़, 3.संपाति-जटायु, 4.उच्चै:श्रवा अश्व, 5.ऐरावत हाथी, 6.शेषनाग-वासुकि, 7.री

प्राचीन कैलाश रहस्य

Aachary Rudreshwaran: ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  प्राचीन कैलास मंदिर का रहस्य जानकर आआश्चर्यचकित रह जाओगे!!!!! आपने अनेको रहस्यमयी स्थानों के बारे में सुना होगा, कुछ जगहे भूतिया होने से मशहूर है तो कुछ पुरातन होने की वजह से मशहूर, हमारा देश ऐसे अनेक रहस्यों से भरा हुवा है,आज मैं आपको एक ऐसे रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताने जा रहा हु, जो प्राचीन होने के साथ साथ रहस्यमयी भी है। कुछ वैज्ञानिको का यह भी मानना है की इस मंदिर का निर्माण एलियन ने किया था, लेकिन इसकी सच्चाई क्या है ये कोई नहीं जान पाया है, उस मंदिर का नाम है, कैलास मंदिर, ये मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है, इस स्थान पर अनेको गुफाएं है, उनमे से कुछ बौद्ध गुफाएं है, कुछ जैन गुफाएं है और कुछ हिन्दू गुफाएं है एस कुल ३४ गुफाएं मौजूद है। इस स्थान को विश्व में एल्लोरा केव्स के नाम से जाना जाता है, इन्ही गुफाओ में से १६ वीं गुफा में स्थित है कैलास मंदिर, सुन्दर कलाकृतियों का ये नमूना है, इस मंदिर को हर साल दुनिया भर से लोग देखने आते है, अनेक शोधकर्ता

अघोर

Aachary Rudreshwaran: ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  || अघोर || बड़ी विचित्र और गलत धारणा है, की भभूत डाल ली, रुद्राक्ष पहनें लिया  काले पीले वस्त्र लपेट लिए, मांस, मदिरा का भक्षण करना, मुंड माला, खोपड़ी धारण कर ली तोह यह अघोर, बन गए अघोरी, बन गए सिद्ध, अघोर कोई अलग थलग मार्ग नहीं, सभी अघोर है, सम्पूर्ण जगत अघोर है, शिव, शक्ति, राम, कृष्ण आदि से ले कर बुद्ध, महावीर, मूसा, ईसा और मोहमद, यह जितने पूर्ण हुए, वह अघोर ही है, और आगे भी अनेकों होते रहेंगे, अघोर वस्त्र नहीं, अघोर कोई वेष भूषा नहीं, अघोर सृष्टि से सामरस्य होने की अवस्था है, स्थितिप्रज्ञ होना ही अघोर है, भेद और तिरस्कार रहित स्वछंद और परिपूर्ण हो, दसो दिशाओं में "में ही में" हूं, और कोई नहीं, "सभी मुझसे है, में सभी से" इसी भाव को अघोर कहा गया है, अघोर शब्द बना है अ + घोर, "घोर" का अर्थ है कठिन, उत्पात, भयंकर, या सरल भाषा में (Complicated) और "अ" लगाने से उसका विपरीत, अर्थात जो कठिन नहीं, उत्पाति नहीं, भयंकर नहीं, complicated

पित्र दोष का लग्न कुंडली में योग

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  पितृ दोष में जिम्मेदार ज्योतिषीय योग:- 1. लग्नेश की अष्टम स्थान में स्थिति अथवा अष्टमेष की लग्न में स्थिति। 2. पंचमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की पंचम में स्थिति। 3. नवमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की नवम में स्थिति। 4. तृतीयेश, यतुर्थेश या दशमेश की उपरोक्त स्थितियां। तृतीयेश व अष्टमेश का संबंध होने पर छोटे भाई बहनों, चतुर्थ के संबंध से माता, एकादश के संबंध से बड़े भाई, दशमेश के संबंध से पिता के कारण पितृ दोष की उत्पत्ति होती है।  5. सूर्य मंगल व शनि पांचवे भाव में स्थित हो या गुरु-राहु बारहवें भाव में स्थित हो। 6. राहु केतु की पंचम, नवम अथवा दशम भाव में स्थिति या इनसे संबंधित होना। 7. राहु या केतु की सूर्य से युति या दृष्टि संबंध (पिता के परिवार की ओर से दोष)। 8. राहु या केतु का चन्द्रमा के साथ युति या दृष्टि द्वारा संबंध (माता की ओर से दोष)। चंद्र राहु पुत्र की आयु के लिए हानिकारक। 9. राहु या केतु की बृहस्पति के साथ युति अथवा दृष्टि संबंध (दादा अथवा गुरु की ओर से दोष)। 10. मंगल

सत्यम शिवम सुंदरम

शास्त्रो का महावाक्य है सत्यं शिवम् सुन्दरम, मानव जीवन के यही तीन मूल्य हैं, जो सत्य है वही शिव है और जो शिव है वहीं सुंदर है, पश्चिम का सौंदर्यशास्त्री यह मानकर चलता है कि सुंदरता द्रष्टा की दृष्टि में है, यानी सौंदर्य बोध नितांत व्यक्तिनिष्ठ है, परन्तु अध्यात्म सुन्दरता की इस परिभाषा को खारिज कर देती है, वह सत्य, शिव और सुन्दर को सर्वथा वस्तुनिष्ठ मानती है, मूल्य सापेक्ष न होकर निरपेक्ष हैं। मनुष्य इसलिये मनुष्य है, क्योंकि वह मूल्यों के अधीन है, मूल्य उसकी विशिष्ट संपत्ति है, सुन्दर क्या है? जो शिव है वही सुंदर है, अर्थात जिसमें शिवत्व नहीं है, उसमें सौंदर्य भी नहीं है, "यस्मिन् शिवत्वंनास्तितस्मिन सुन्दरम् अपिनास्तिएव" हमारे मन को सुख देने वाली चीज सुंदर है, यह सुंदरता की बचकानी परिभाषा है, सुख और दु:ख संस्कारगत होने के नाते व्यक्तिनिष्ठ हैं, अनुकूल वेदना का नाम सुख है और प्रतिकूल वेदना का नाम दु:ख है। एक ही चीज किसी को सुख देती है और किसी को दु:ख, परंतु सुंदरता तो वस्तुनिष्ठ ही है, हमारे शास्त्र कहते है कि जो कल्याणकारी है वही सुंदर है, यह जरूरी नहीं है कि सुखद चीज सुंदर

कला भेद से भगवान् के अवतार ---

कला भेद से भगवान् के अवतार --- कला भेद से छः प्रकार के भगवान् के अवतार कहे गये हैं -- १ . पूर्णतमावतार ,  २ . पूर्णावतार ,  ३. विभूत्यावतार, ४. कलावतार ,  ५. अंशांशावतार, ६. आवेशावतार । १. पूर्णतमावतार ---   सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर  जीव , ईश्वर तथा शुद्ध ब्रह्म सभी पूर्ण हैं , उतना ही नहीं ! बल्कि तिनके से लेकर ब्रह्मा पर्यन्त सभी पूर्ण हैं , जैसा कि वेद में कहा गया है --- "पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।  पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ " अद: का अर्थ होता है ईश्वर (परोक्ष) पूर्ण है ।   इदं = प्रत्यक्ष जीव , यह भी पूर्ण है । पूर्ण ब्रह्म से पूर्णता को लेकर जो जगत् की रचना के अनन्तर शेष बचता है --- वह भी पूर्ण है । वह ब्रह्म ज्ञान-स्वरूप है , ज्ञान के सम्बन्ध में कहा है -- "ज्ञानमेकं सदा भाति सर्वावस्थासु निर्मलम् । मन्दभाग्या: न जानन्ति स्वरूपं केवलं वृहत् ।।" ज्ञान एक है , वह सदा सभी अवस्थाओं में निर्मलता से प्रकाशित होता है , किन्तु मन्दभाग्य वाले पुरुष  अर्थात्  मल-विक्षेप-आवरण से युक्त अंतःकरण वाले परमात्मा के सर्वव्यापी स्वरूप को नहीं

राधा उपासना विधि

श्रीराधा की उपासना के नियम श्रीराधा की उपासना करने वाले साधक को अपने को श्रीराधा की सेविकाओं में से एक तुच्छ सेविका मानकर उपासना करनी चाहिए और सदैव यही भावना करनी चाहिए कि मैं श्रीराधा की दासियों की दासी बनी रहूँ। श्रीराधा की सेविकाओं की सेवा में सफल होने पर ही श्रीराधा की सेवा का अधिकार मिलता है। श्रीराधामाधव की युगल उपासना गोपीभाव से की जाती है; गोपीभाव का अर्थ है–हर क्रिया द्वारा श्रीराधामाधव को सुख पहुंचाना; अपने सुख को भुलाकर केवल श्रीकृष्णसुख की ही चिन्ता करना। गोपीभाव की प्राप्ति के लिए साधक को काम, क्रोध, लोभ, द्रोह का त्याग करना आवश्यक है। नारदपांचरात्र में बताया गया है कि चिरकाल तक श्रीकृष्ण की आराधना करके मनुष्यों की जो-जो कामना पूर्ति होती है, वह श्रीराधा की उपासना से स्वल्पकाल (थोड़े से समय) में ही सिद्ध हो जाती है। प्रसन्न होकर वे साधक को सभी अभीष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं। शास्त्र में श्रीराधा ‘राधा’ शब्द से ही सभी अभीष्ट कामनाओं को देने वाली कहलाती हैं–‘राध्नोति सकलान् कामान् ददाति इति राधा।’ वे ही जगन्माता और श्रीकृष्ण जगत्पिता हैं। पिता से माता सौगुनी श्रेष्ठ मानी ग

लक्ष्मीनारायण उपासना

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  "श्री लक्ष्मीनारायण साधना " श्री लक्ष्मीनारायण साधना मंत्र ।।ॐ तत्सत ।।                        ।।नारायण हृदयम् ।। ।।हरिः ओम् ।।☀️अस्य श्रीनारायण-हृदय-स्तोत्र-महामन्त्रस्य भार्गव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः लक्ष्मीनारायणो देवता नारायण प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।। ☀️करन्यास नारायणः परं ज्योतिरिति अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । नारायणः परं ब्रह्मेति तर्जनीभ्यां नमः । नारायणःपरो देव   इति  मध्यमाभ्यां नमः । नारायणःपरं धामेति अनामिकाभ्यां नमः । नारायणः परो धर्म इति कनिष्ठिकाभ्यां नमः । विश्वं नारायणः इति करतलपृष्ठाभ्यां नमः ।। ☀️अङ्गन्यास:- नारायणःपरं ज्योतिरिति  हृदयाय नमः । नारायणःपरं ब्रह्मेति शिरसे स्वाहा । नारायणः परो देव इति शिखायै वौषट् । नारायणः परं धामेति कवचाय हुम् । नारायणः परो धर्म इति नेत्राभ्यां वौषट् । विश्वंनारायण इति अस्त्राय फट् ।                  भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः ।। ☀️।।।।अथ ध्यानम् ।।। उद्यादादित्यसङ्काशं पीतवासं  चतुर्भुजम् । शङ्खचक्रगदापाणिं ध्यायेल्लक्ष्म

डामर तंत्र संपुर्ण कुंजिका स्त्रोत पाठ विधी

संपुर्ण कुंजिका स्त्रोत पाठ विधी सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती पाठ के समान फलदायी है सिद्ध कुंजिकास्तोत्र- अद्भुत प्रभाव वाला है यह सिद्ध कुंजिका स्तोत्रः सिद्धकुंजिका स्तोत्र को आप पावरहाउस समझ सकते हैं। यदि विधि-विधान से इसकी सिद्धि कर ली तो आपमें बहुत से चमत्कारी प्रभाव दिखने लगेंगे। मात्र 21 दिनों में इसकी साधना की एक सरलतम विधि जानिए। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की साधना किसी भी नवरात्रि से या किसी भी माह की दुर्गाष्टमी से शुरू की जा सकती है। -प्रातः उठकर स्नान आदि के बाद शुद्ध वस्त्र धारण करें कोई लाल वस्त्र जरूर रखें। -आसन बिछाकर पूर्व दिशा की मुंह करके बैठ जाएं और सामने भगवती का कल्याणकारी चित्र स्थापित कर दें जिसमें माता शेर पर सवार हैं। -फिर दुर्गा यंत्र यदि हो तो उसे जल से स्नान कराकर, विधिवत पूजा करके स्थापित कर दें। -उस पर कुंकुम, अक्षत, लाल पुष्प चढाएं, घी का दीपक व धूपबत्ती लगा देँ। -फिर सिद्ध कुंजिकास्त्रोत्र का रोज 108 बार पाठ लगातार 21 दिन तक करें। -फिर 21वें दिन पाठ समाप्त कर एक, तीन, पांच या नौ कुमारी कन्याओं को भोजन कराएं और यथोचित वस्त्र दक्षिणा आदि दें। -साधना के दौरान पूर्ण