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अगस्त, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कर्तृत्व , भोक्तृत्व और निवारण

*कर्तृत्व , भोक्तृत्व और निवारण* जीे जैसे जल बिना किसी प्रयोजन के नीचे की और ही बहता है क्यूंकि नीचे की और बहना जल की प्रकृति है वैसे ही सृष्टि रचना करना ब्रह्म (परम) की प्रकृति है यथा प्रकाशयत्येक: कृत्स्नं लोकमिमं रवि:। क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत॥ जीवात्मा का वास्तविक स्वरुप ब्रह्म ही है ब्रह्म ही सर्वोच्च आत्मा ( सर्व कारण कारणम् ) है जो न जन्मता है , न मरता है , शाश्वत और अनादि है। नजायते म्रियतेवा कदाचिन्नायं भूत्वाभविता वा नभूय:। अजो नित्य: शाश्वतोऽयंपुराणो नहन्यतेहन्यमाने शरीरे॥ लेकिन अज्ञानवश जीवात्मा को यह अहम् होता है की वह ब्रम्ह से पृथक अपना अलग अस्तित्व रखता है ( अज्ञान के कारण ) इसी अज्ञान के कारण वह संसार के बंधन में बंधता है न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभु:। न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते॥ आत्मा का यह कर्तत्व और भोगत्व प्रकृति के गुणों के साथ उसके संयोग के कारण उत्पन होता है प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:। अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥ यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्। क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्त

लघुकथा

किसी गाँव में एक चोर रहता था। एक बार उसे कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला, जिससे उसके घर में खाने के लाले पड़ गये। अब मरता क्या न करता, वह रात्रि के लगभग बारह बजे गाँव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में घुस गया। वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं, अपने पास कुछ नहीं रखते फिर भी सोचा, ‘खाने पीने को ही कुछ मिल जायेगा। तो एक दो दिन का गुजारा चल जायेगा।’ जब चोर कुटिया में प्रवेश कर रहे थे, संयोगवश उसी समय साधु बाबा ध्यान से उठकर लघुशंका के निमित्त बाहर निकले। चोर से उनका सामना हो गया। साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था, पर साधु यह नहीं जानते थे कि वह चोर है। उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया ! साधु ने बड़े प्रेम से पूछाः “कहो बालक ! आधी रात को कैसे कष्ट किया ? कुछ काम है क्या ?” चोर बोलाः “महाराज ! मैं दिन भर का भूखा हूँ। साधुः “ठीक है, आओ बैठो। मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे, वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूँ। तुम्हारा पेट भर जायेगा। शाम को आ गये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते। पेट का क्या है बेटा ! अगर मन में संतोष हो तो जितना

अष्टम भाव में शनि के फल।

अष्टम भाव में शनि के फल। जन्मकुंडली में फलादेश करते हुए कुंडली का आठवा भाव और शनि दोनों ही बड़े महत्वपूर्ण माने जाते हैं। कुंडली में अष्टम भाव को आयु का स्थान माना जाता है (कुछ विद्वान इसे मत्यु का स्थान समझते हैं, जो कि गलत है, वा‌स्तव में मृत्यु का स्थान 7वां है।) आठवें भाव जैसा प्रभाव शनि ग्रह का भी है, इसी लिए शनि को इस स्थान का कारक कहा गया है। आठवां स्थान और शनि दोनों ही अचानक आने वाली मुसीबत, प्राकृतिक आपदा, अग्नि, जल, वायु या किसी भी प्रकार की आकस्मिक दुर्घटना, कारागार, यानी जेल, बड़े संकट, शरीर कष्ट की सूचना देते हैं। आठवें स्थान को दुःख भाव या पाप भाव के रूप में देखा जाता है शनि ग्रह जहां – कर्म, आजीविका, जनता, सेवक, नौकरी, अनुशाशन, दूरदृष्टि, प्राचीन वस्तु, लोहा, स्टील, कोयला, पेट्रोल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट, मशीन, औजार, तपस्या और अध्यात्म का कारक माना गया है। वहीं यह ग्रह हमारे पाचन–तंत्र, शिरा नाड़ी, हड्डियों के जोड़, बाल, नाखून,और दांतों को भी  नियंत्रित करता है। और वातरोग, शरीर कष्ट, दु:ख का भी कारक है। जन्मकुंडली का अष्टम भाव पाप या दुःख का भाव होने से अष्टम भाव में किसी भ

वृहद गणेश पूजन विधि

श्री गणेश चतुर्थी विस्तृत पूजन विधि 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन, रोली, सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर। विधि👉  गणेश जी की मूर्ती लकड़ी की चौकी पर लाल या हरा रंग का कपड़ा बिछाकर स्वयं पूर्वाभिमुख बैठकर चौकी को आने सामने रखकर उसके उर गणेश जी को आसान दें और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करे अथवा मिट्टी के गणेश बनाये और आवाहन करें। आवाहन मंत्र 〰️〰️〰️〰️ गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं। उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम।। आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव। यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।। अब नीचे दिया मंत्र पढ़कर प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें - 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ मंत्र👉 अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन।। निम्न मंत्र से गणे