*कर्तृत्व , भोक्तृत्व और निवारण* जीे जैसे जल बिना किसी प्रयोजन के नीचे की और ही बहता है क्यूंकि नीचे की और बहना जल की प्रकृति है वैसे ही सृष्टि रचना करना ब्रह्म (परम) की प्रकृति है यथा प्रकाशयत्येक: कृत्स्नं लोकमिमं रवि:। क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत॥ जीवात्मा का वास्तविक स्वरुप ब्रह्म ही है ब्रह्म ही सर्वोच्च आत्मा ( सर्व कारण कारणम् ) है जो न जन्मता है , न मरता है , शाश्वत और अनादि है। नजायते म्रियतेवा कदाचिन्नायं भूत्वाभविता वा नभूय:। अजो नित्य: शाश्वतोऽयंपुराणो नहन्यतेहन्यमाने शरीरे॥ लेकिन अज्ञानवश जीवात्मा को यह अहम् होता है की वह ब्रम्ह से पृथक अपना अलग अस्तित्व रखता है ( अज्ञान के कारण ) इसी अज्ञान के कारण वह संसार के बंधन में बंधता है न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभु:। न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते॥ आत्मा का यह कर्तत्व और भोगत्व प्रकृति के गुणों के साथ उसके संयोग के कारण उत्पन होता है प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:। अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥ यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्। क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्त
देवो के देव महादेव को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं, अतिशीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त की इच्छा पूर्ण करने वाले शिव शंकर को भोलेनाथ भी कहते है, तंत्राधिपति बाबा महाकाल की अनेक तांत्रिक मंत्रों द्वारा की जाने वाली साधना भी देव पूजा ही कहलाती हैं । तंत्र मंत्रों में से एक है शिव शाबर मन्त्र, तंत्र शास्त्र के अनुसार इस मंत्र की साधना से भगवान महाकाल शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, और अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते है ।