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दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विवाह के सिद्ध उपाय

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  व्यक्ति की जन्मकुंडली से यह ज्ञात किया जा सकता है कि किन दोषों व किन दशाओं के कारण विवाह में बाधाएं आ रही हैं और उचित उपायों के माध्यम से इन सभी बाधाओं को दूर भी किया जा सकता है। आज हम आपको ऐसे ही कुछ विवाह बाधा दूर करने के उपाय बता रहे हैं,  जिनसे विवाह में होने वाले विलंब व अवरोधों को दूर किया जा सकता है। विवाह में देरी के उपाय/मंत्र: विवाह में आने वाली अड़चनें तथा गृह दोष आदि के निवारण के लिए कुछ मंत्र व साधनाएं प्रचलित हैं; जिनका जाप पूरा कर के आप अपने विवाह में आने वाली मुश्किलों को दूर कर सकते हैं। 1- अगर किसी कन्या के विवाह में विलंब हो रहा है, तो हर गुरूवार के दिन बरगद, केले या पीपल के वृक्ष पर बिना नागे के जल चढ़ाएं तथा निम्नलिखित मंत्र का जाप करें- “गौरी आवे ,शिव जो ब्याहवे, (लड़की का नाम) का विवाह तुरंत सिद्ध करें, देर ना करें, जो देर होए, तो शिव को त्रिशूल पड़े। गुरु गोरखनाथ की दुहाई फिरै।” शिव पार्वती जी का यह मंत्र जीवन के दोषों को समाप्त कर, विवाह का मार्ग प्रशस्त करता है। 2- यद

विद्या एवम अविद्या

विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह । अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते॥ इसका शाब्दिक अर्थ यह है- जो विद्या और अविद्या-इन दोनों को ही एक साथ जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्त्व (देवतात्मभाव = देवत्व) प्राप्त कर लेता है।

ईशावास्योपनिषद

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  अनेजदेकं मनसो ज़वीयो नैनद्देवा आप्नुवन पूर्वंमर्षत।। तद्धावतोsन्यान्यत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति।।                     वहब्रह्म अचल,एक ही एवं मन से भी अधिक वेगवान है तथा सर्वप्रथम है, प्रत्येक स्थान पर पहले से ही व्याप्त है | उसे  इन्द्रियों से प्राप्त (देखा, सुना,अनुभव आदि ) नहीं किया जा सकता क्योंकि वह इन्द्रियों को प्राप्त नहीं  है | वह अचल होते हुए भी अन्य सभी दौड़ने वालों से तीब्र गति से प्रत्येक स्थान पर पहुँच जाता है क्योंकि वह पहले से ही सर्वत्र व्याप्त है | वही समस्त वायु, जल आदि  विश्व को धारण करता है |                                        सम्पूर्ण---🖌              ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● आप हमारे अन्य प्रसारण माध्यम से जुड़ सकते है , 📡 ब्लॉग Aachary Rudreswaran  👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻       http://mangalamshiva.blogspot.com/?m=1 📡 टेलीग्राम 👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼 https://t.me/AacharyRudreshwaran   📡  शिव सायुज्य 👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇

कौन है ब्राह्मण

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  ब्राह्मण और उनके गुण:- ब्राह्मण के उद्भव,लक्षण के सन्दर्भ में बताते हुये लिखा गया कि- ब्रह्मवीर्यम,ब्रह्मक्षेत्रम संस्कारा ब्रह्मसम्भवा:। ब्राह्मणाचरणाद,ब्रह्मविद्याभिर्ब्राह्मणो भवेत॥ अर्थात ब्राह्मण माता-पिता ,वैदिक संस्कारों वाला और ब्राह्मणों के निमित्त आचरणवाला,ब्रह्मविद्या का ज्ञाता ये ब्राह्मण के लक्षण हैं। साथ हीं कहा गया कि -“ब्रह्मण्याम ब्राह्मण:”,अर्थात जन्म से हीं ब्रह्मणत्व की प्राप्ति ब्राह्मण को प्राप्त होती है। ब्राह्मण के गुण:-       ब्राह्मण के गुण के सन्दर्भ में बताया गया कि- “रिजु: तपस्वी सन्तोषी क्षमाशीलों जितेंद्रियः।                        दाता शूर दयालुश्च ब्राह्मणो नवभिर्गुनै: ॥” अर्थात ब्राह्मण को सरल,तपस्वी,मेहनती और सन्तुष्ट रहने वाला,क्षमाशील,इन्द्रियनिग्रह,दान करने वाला,बहादुर और सब पर दया करने वाला होना चाहिये, ये ब्राह्मणों के गुण हैं।                                        सम्पूर्ण---🖌              ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● आप हमारे अन्य प्रसारण माध्यम से जुड़ सकते

किस बृक्ष को काटने से कौन सा पाप लगता है

विश्वकर्मप्रकाश,वास्तुरत्नाकर,वृहत्संहिता आदि ग्रन्थों में पेड़ कब और कैसे काटा जाय- इस विषय की भी चर्चा है- *द्व्यङ्गराशिगते सूर्ये माघे भाद्रपदे तथा।* *वृक्षाणां छेदनं कार्यं सञ्चयार्थं न कारयेत्।।* *सिंहे नक्ते च दारुणां छेदनं नैव कारयेत्।* *ये मोहाच्च प्रकुर्वन्ति तेषां गेहेऽग्नितो भयम्।।* अर्थात् द्विस्वभाव(मिथुन,कन्या,धनु,मीन)राशियों में सूर्य के रहने पर (विशेषकर भाद्र और माघ मास में) वृक्ष काटना चाहिए,किन्तु संचय के लिए काटना उचित  नहीं है।यानी शीघ्र प्रयोग के लिए काटा जा सकता है।पुनः कहते हैं कि सिंह और मकर के सूर्य रहने पर उक्त महीनों में भी गृहकार्यार्थ वृक्षछेदन नहीं करना चाहिए।अज्ञान,या स्वार्थ वश यदि ऐसा करता है तो उसे अग्नि का कोपभाजन बनना पड़ता है।यानी अग्निभय की आशंका रहती है। *सौम्यं पुनर्वसुं मैत्रं करं मूलोत्तरात्रये।* *स्वाती च श्रवणं चैव वृक्षाणां छेदने शुभम्।।* अर्थात् मृगशिरा,पुनर्वसु,अनुराधा,हस्ता,मूल,उत्तराफाल्गुनी,उत्तराषाढ़,उत्तरभाद्रपद, स्वाती,और श्रवण- इन दस नक्षत्रों में पेड़ काटना उत्तम होता है।   चन्द्रमा के दस नक्षत्रों की चर्चा करके अब अगले श्लोक में स

हिन्दू शब्द उतपत्ति

 *हिन्दू' शब्द, करोड़ों वर्ष प्राचीन,* *संस्कृत शब्द है!* अगर संस्कृत के इस शब्द का सन्धि विछेदन करें तो पायेंगे .... *हीन+दू* = हीन भावना + से दूर *अर्थात* जो हीन भावना या दुर्भावना से दूर रहे, मुक्त रहे, वो हिन्दू है ! हमें बार-बार, हमेशा झूठ ही बतलाया जाता है कि हिन्दू शब्द मुगलों ने हमें दिया, जो *"सिंधु" से "हिन्दू"* हुआ l *हिन्दू शब्द की वेद से ही उत्पत्ति है !* जानिए, कहाँ से आया हिन्दू शब्द, और कैसे हुई इसकी उत्पत्ति ? भारत में बहुत से लोग हिन्दू हैं, एवं वे हिन्दू धर्म का पालन करते हैं l अधिकतर लोग *"सनातन धर्म" को हिन्दू धर्म मानते हैं*। कुछ लोग यह कहते हैं कि *हिन्दू शब्द सिंधु से बना है* औऱ यह फारसी शब्द है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है! हमारे "वेदों" और "पुराणों" में *हिन्दू शब्द का उल्लेख* मिलता है। आज हम आपको बता रहे हैं कि हमें हिन्दू शब्द कहाँ से मिला है! "ऋग्वेद" के *"ब्रहस्पति अग्यम"* में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया हैं :- *“हिमलयं समारभ्य*  *यावत इन्दुसरोवरं ।* *तं देवनिर्मितं देशं* *हिन्दुस्थ

क्षौर कर्म निर्णय

 *क्षौर कर्म और उसके नियम एवं अन्य विविध मुहूर्त* 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ शास्त्र में क्षौर कर्म के लिए निम्न क्रम निर्धारित किया गया है। पहले दाढ़ी दाहिनी ओर से पूरी बनवा ले, फिर मुछ तब बगल के बाल फिर सिर के बालो को और अंत में आवश्यकतानुसार अन्य रोमो को कटवाना चाहिए। अन्त में नख कटवाने का विधान है। वर्जित तिथि वार 〰️〰️〰️〰️〰️ एकादशी, चतुर्दशी, अमावश्या, पूर्णिमा, संक्रांति, व्यतिपात, विष्टि (भद्रा), व्रत के दिन, श्राद्ध के दिन मंगलवार और शनिवार को क्षौर कर्म नहीं कराना चाहिए। रविवार को क्षौर कर्म कराने से एक मास की, शनिवार को सात मास की,भौमवार को आठ मास की आयु को उस उस दिन के अभिमानी देवता क्षीण कर देते है। इसी प्रकार बुधवार को क्षौर करने से पांच मास की, सोमवार को सात मास की, गुरुवार को दस मास की और शुक्रवार को ग्यारह मास की आयु की वृद्धि उस उस दिन के अभिमानी देवता कर देते है। पुत्र की इच्छा रखने वाले को सोमवार को और लक्ष्मी के इच्छा रखने वाले को गुरुवार को क्षौर नहीं कराना चाहिए। अन्य विविध मुहूर्त 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ बच्चों को स्कूल में डालना(विद्यारम्भ) 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शुभ ग्रा

श्री विद्या गोपनीय तत्व

षोडशी (श्री) विद्या और उसका गोपनीयत्व  श्री देव्युवाच-    परब्रह्मतया साक्षाच्छ्रीविद्या षोडशाक्षरी।    कथयं त्वं महादेव यद्यहं तव वल्लभा।।    श्री देवी कहती हैं- हे महादेव! यदि मैं आपकी प्रिय हूँ, तब यह बताने की कृपा करे कि साक्षात् परब्रह्मरूप षोडश अक्षर वाली श्रीविद्या क्या है?  ईश्वर उवाच-              शठत्वेन वरारोहे       श्रीविद्यामन्त्रविद्बुध:।        योगिनीनां भवेद्भक्ष्य: श्रीगुरौ: शासनात्प्रिये।।        ईश्वर कहते हैं- हे प्रिये! हे वरारोहे! यदि श्रीविद्या के ज्ञाता शठ हों तब वे योगिनीगण के भक्ष्य होते हैं। यह श्रीगुरु शासन (आदेश) है। षोडशार्णां महाविद्यां न दद्यात्कस्यचित् प्रिये।  राज्ञे राज्यप्रदायापि पुत्राय प्राणदाय वा।। देयं तु सकलं भद्रे साम्राज्यमपि पार्वति।  शिरोऽपि प्राणसहितं न देया षोडशाक्षरी।।      हे प्रिये! षोडशवर्णात्मक विद्या किसी को प्रदान न करे। राज्य प्रदानकारी राजा को भी, पुत्र को भी अथवा प्राणदान के बदले भी यह विद्या प्रदान न करे। हे पार्वती! हे भद्रे! सब कुछ दे दे, साम्राज्य भी प्रदान कर दे, प्राणों के साथ मस्तक भी अर्पित कर दे लेकिन षोडशाक्षरी किसी को

कुंड एवं मण्डप विधि

*कुण्ड और मण्डप बिधि* ------------- यज्ञ का मण्डप एवं कुण्ड बहुत ही सुन्दर तथा सुव्यवस्थित बने हुए  तथा कलापूर्ण सुन्दरता के साथ सजे हुए होने चाहिए । कलापूर्ण वस्तुएँ, सुरुचिकर, आकर्षक एवं शोभनीय प्रतीत होती हैं, उनमें चित्त लगता है । कार्यकर्त्ताओं तथा दर्शकों का मन लगता है,  चित्त प्रसन्न होता है तथा उत्साह बढ़ता है । इसलिए ज्यों-ज्यों,  उल्टे-तिरछे कुण्ड-मण्डप बना लेने का निषेध किया गया है और इस बात पर जोर दिया गया है,  कि कला-व्यवस्था, नाप-तौल, सौन्दर्य, शोभा आदि का ध्यान रखकर ही इनका निर्माण किया जाय । यज्ञ का मण्डप किस प्रकार बनाया जाय तथा कुण्ड किस प्रकार तैयार किये जायँ,  इस सम्बन्ध में अनेक स्वतन्त्र प्राचीन पुस्तकें उपलब्ध हैं । (१) विट्ठल दीक्षित कृत-कुण्डार्क (२) शङ्कर भट्ठ कृत-कुण्डार्क (३) नारायण भट्ठ कृत- कुण्डदर्पण  (४) अनन्त देवज्ञ कृत-"कुण्ड मर्त्तण्ड (५) विश्वनाथ कृत कुण्ड कौमुदी (६) लक्ष्मीधर भट्ठ कृत कुण्ड कारिक  (७) कुण्ड शुल्व कारिका (८) महादेव गुरुकृत-कुण्ड प्रदीप (९) रामचन्द्रचार्य कृत-कुण्डोदधि  (१०) द्विवेदी विश्वनाथ कृत-कुण्ड रत्नाकर (११) श्रीधर कृत- कु