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माहेश्वर सूत्र

शिव के डमरू से निकले स्वर  पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव के डमरू से कुछ अचूक और चमत्कारी मंत्र निकले थे। माहेश्वर सूत्रों की उत्पत्ति भगवान नटराज (शिव) के द्वारा किये गये ताण्डव नृत्य से मानी गयी है।  नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।  उद्धर्त्तुकामो सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्॥  अर्थात:- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपञ्च (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।" डमरु के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियाँ निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का प्रकाट्य हुआ।  इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज को माना जाता है। प्रसिद्धि है कि महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण का आधार बना। माहेश्वर सूत्रों की कुल संख्या १४ है जो निम्नलिखित हैं:  जो इस प्रकार है  १. अ इ उ ण्।  २. ॠ ॡ क्।  ३. ए ओ ङ्।  ४. ऐ औ च्।  ५. ह य व र ट्।  ६. ल ण्  ७. ञ म ङ

माह के सनातन नाम

१तपः (माघ) २तपस्य (फाल्गुन) ३मधु (चैत्र) ४माधव (वैशाख) ५शुक्र (ज्येष्ठ) ६शुचि (आषाढ) ७नभः (श्रावण) ८नभस्य (भाद्र) ९इष (आश्विन) १०उर्ज (कार्तिक) ११सहः (मार्गशीर्ष)  १२सहस्य (पाैष)।  मधु, माधव, शुक्र, शुचि, नभ, नभस्य, इष, ऊर्ज, सह, सहस्य, तप, तपस्या।  मधुश्च माधवश्च वासन्तिकावृतू ।  शुक्रश्च शुचिश्च ग्रैष्मावृतू । नभश्च नभस्यश्च वार्षिकावृतू । इषश्चोर्जश्च शारदावृतू । सहश्च सहस्यश्च हैमन्तिकावृतू ।  तपश्च तपस्यश्च शैशिरावृतू ।। (यजुर्वेद तैतरिय संहिता ४.४.११ मधुश्च माध्वश्चैव शुक्र शुचिरथो नभः।।  नभस्यश्चेष उर्जश्च सहश्चाथ सहस्यकः।  तपस्तपस्यः क्रमतः सौरमासाः प्रकीर्तिता।।

काली सहस्रनाम अनुष्ठान विधी

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------- काली-सहस्रनाम का एक पाठ रात्रि मे करने से समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलता है।आज के समय में जबकि गुरु का मिलना मुश्किल है और साधना मार्ग ठीक से निर्देशित करने वालों की बहुत कमी सामान्य पाठकों को महसूस होती है ,जबकि उनकी समस्याए बहुत अधिक बढ़ चुकी हैं ,ऐसे  मे काली सहस्त्रनाम का पाठ सामान्य जन के लिए अमृत स्वरुप और हर समस्या का रामबाण इलाज है | ‘भैरव-तन्त्र’ के अनुसार साधक को अपनी साधना की सम्पूर्णत: निर्विघ्न सिद्धि के निमित्त कालिका देवी की उपासना करना अपरिहार्य है ।भगवती काली ही तंत्रों के प्रवर्तक भगवान सदाशिव की आह्लादनी शक्ति हैं । कालिका देवी के कृपा-कटाक्ष बिना अघोरेश्वर शिव भी साधक को उसका वांछित वर देने में असमर्थ हो जाते हैं। ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ (गणपति खण्ड) में परशुरामजी द्वारा शिवजी की आज्ञा से कालिका देवी को प्रसन्न करने हेतु बार-बार स्तुति करने का वर्णन मिलता है । शिवजी द्वारा प्रदत्त‘कालिका सहस्रनाम’ पूर्णत: सिद्ध है । इसका पाठ करने के लिए पूजन, हवन, न्यास,

ब्राह्मण के 11 कारक

ब्राह्मण कुल परम्परा के 11  कारक  🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 (1) गोत्र👉  व्यक्ति की वंश-परम्परा जहाँ और  से प्रारम्भ होती है, उस वंश का गोत्र भी वहीं से प्रचलित होता गया है। इन गोत्रों के मूल ऋषि :– विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप। इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्त्य की संतान गोत्र कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भरद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है।  (2) प्रवर👉 अपनी कुल परम्परा के पूर्वजों एवं महान ऋषियों को प्रवर कहते हैं। अपने कर्मो द्वारा ऋषिकुल में प्राप्‍त की गई श्रेष्‍ठता के अनुसार उन गोत्र प्रवर्तक मूल ऋषि के बाद होने वाले व्यक्ति, जो महान हो गए, वे उस गोत्र के प्रवर कहलाते हें। इसका अर्थ है कि कुल परम्परा में गोत्रप्रवर्त्तक मूल ऋषि के अनन्तर अन्य ऋषि भी विशेष महान हुए थे। (3) वेद👉 वेदों का साक्षात्कार ऋषियों ने लाभ किया है। इनको सुनकर  कंठस्थ किया जाता है। इन वेदों के उपदेशक गोत्रकार ऋषियों के जिस भाग का अध्ययन, अध्यापन, प्रचार प्रसार, आदि किया, उसकी रक्षा का भार उसकी संतान पर पड़ता गया, इससे उनके पूर्व पुरूष जि

पतिब्रत क्या है

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------- चर्चा🤔🤔🤔 पतिर्बन्धु गतिर्भर्ता दैवतं गुरूरेव च। सर्वस्याच्च परः स्वामी न गुरू स्वामीनः परः।। (ब्रह्मवैवतं पु. कृष्ण जन्म खं 57-11) अर्थ == *स्त्रियों का सच्चा बन्धु पति है, पति ही उसकी गति है। पति ही उसका एक मात्र देवता है। पति ही उसका स्वामी है और स्वामी से ऊपर उसका कोई गुरू नहीं।। भर्ता देवो गुरूर्भता धर्मतीर्थव्रतानी च। तस्मात सर्वं परित्यज्य पतिमेकं समर्चयेत्।। (स्कन्द पु. काशी खण्ड पूर्व 30-48) अर्थ == *स्त्रियों के लिए पति ही इष्ट देवता है। पति ही गुरू है। पति ही धर्म है, तीर्थ और व्रत आदि है। स्त्री को पृथक कुछ करना अपेक्षित नहीं है। दुःशीलो दुर्भगो वृध्दो जड़ो रोग्यधनोSपि वा। पतिः स्त्रीभिर्न हातव्यो लोकेप्सुभिरपातकी।। (श्रीमद् भा. 10-29-25) अर्थ == *पतिव्रता स्त्री को पति के अलावा और किसी को पूजना नहीं चाहिए, चाहे पति बुरे स्वभाव वाला हो, भाग्यहीन, वृध्द, मुर्ख, रोगी या निर्धन हो। पर वह पातकी न होना चाहिए। विशेष ,, उपरोक्त लेख में जहाँ पत्नियों के लिए " पतिव्रत

जय गंगाधर आरती

ॐ जय गङ्गाधर जय हर जय गिरिजाधीशा। त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा।। ॐ हर हर महादेव💐 कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रुमविपिने। गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने।। कोकिलकूजित खेलत हंसानन ललिता। रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता।। ॐ हर हर महादेव💐 तंस्मिल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता। तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता।। क्रीड़ा रचयति भूषारंजित निजमीशम्। इन्द्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्।। ॐ हर हर महादेव💐 बिबुधबधू बहु नृत्यत हृदये मुदसहिता। किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वरसहिता।। धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते। क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते।। ॐ हर हर महादेव💐 रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्जवलिता। चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां।। तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते। अंगुष्ठांगुलिनादं  लासकतां कुरुते।। ॐ हर हर महादेव💐 कर्पूरद्युतिगौरं पञ्चाननसहितम्। त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकंठयुतम्। सुंदरजटाकलापं पावकयुतभालम्। डमरूत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्।। ॐ हर हर महादेव💐 मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्। वामाविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्।। सुंदरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्। इति बृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणम्।। ॐ हर हर महादेव💐

चिर हरण लीला

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------- चिर हरण लीला का रहस्य भगवान् श्रीकृष्ण पर आरोप लगाने वाले बुद्धि के शत्रु जरा बुद्धिके कपाट खोलो और विचार करो उस समय श्रीकृष्ण मात्र 6 वर्ष 3 मास के थे । 6 वर्षका बालक के अंदर कैसे स्त्रियों को निर्वस्त्र देखने भावना हो सकती है ? अब स्पष्ट करता हूँ — चीर हरण लीला उस समय हुई थी जब भगवान् श्रीकृष्ण 6 वर्ष 3 मास के थे और हेमन्त ऋतु के प्रथम मास मार्गशीर्ष (दिसम्बर) में गोप कन्याएँ जमुना स्नान करके माँ कात्यायनी का पूजन करती थीं — “हेमन्ते प्रथमे मासे नन्दव्रजकुमारिका: । चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम् ।।” ये स्त्रियां नहीं व्रजकुमारिकाएं अर्थात् 5 से 8 वर्ष की कन्याएँ थीं । यही नहीं सुबह पौ फटते(ब्रह्म मुहूर्त में 4 बजे) ही जमुना स्नान करती थीं – “उषस्युथाय गोत्रै: ….. कालिन्द्यां स्नातुमन्वहम् ।।” अब कल्पना कीजिए प्रातः पौ फटते ही सुबह ब्रह्ममूर्त में कितना अन्धकार रहता है , जिसमें गोपियाँ स्नान करती थीं , जिसमें कोई निर्वस्त्र तो क्या सवस्त्र भी नहीं दिखता । यही नही

नवग्रह एवं वेद की पत्नियाँ

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------- #नवग्रहदेवता के #पत्नी के नाम (1)सूर्य-संध्या, छाया देवी (2)चन्द्र-रोहिणीदेवी (3मंगल-शकितदेवी (4)बुध-इलादेवी (5)बृहस्पति-तारादेवी (6)शुक-सुकितीॅ-उजॅसवथीदेवी (7)शनि-नीला देवी (8)राहु-सीम्हीदेवी (9)केतु-चित्रलेखादेवी #वेदो के #पत्नी के नाम (1) ऋग्वेद-पत्नी सामधेन्याः (2) यजुवेॅद-पत्नी सृगायाः (3) सामवेद-पत्नी कुह्वाः (4) अथवॅवेद-पत्नी समिधः                                        सम्पूर्ण---🖌  ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●                     📳📳📳📳   *9956973754/7607121234*  अत्यधिक पोस्ट के लिए हमारे ब्लॉग को भी देख सकते है-  ```Aachary Rudreshwaran```     आचार्य रुद्रेश्वरण समूह से जुड़ने के लिए        ऊपर के नंबरों पर *YES* भेजें।                                       धन्यवाद।  ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●  *🙆🏼‍♂‼जय श्री अवंतिकानाथ‼🙆🏼‍♂*            🔔‼‼‼‼‼🔔                       🕉🙏🏻🕉

भगवान शिव के जन्म की कथा

भगवान शिव के जन्म की कथा 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ 🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄 हम सबके प्रिय भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ है वे स्वयंभू हैं। लेकिन पुराणों में उनकी उत्पत्ति का विवरण मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं। श्रीमद् भागवत के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे तब एक जलते हुए खंभे से भगवान शिव प्रकट हुए।  विष्णु पुराण में वर्णित शिव के जन्म की कहानी शायद भगवान शिव का एकमात्र बाल रूप वर्णन है। इसके अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए तपस्या की। तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका कोई नाम नहीं है इसलिए वह रो रहा है।   तब ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रूद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’। शिव तब भी चुप नहीं हुए। इसलिए ब्रह्मा ने उ

माता लक्ष्मी जी

पुराणों में माता लक्ष्मी की उत्पत्ति के बारे में विरोधाभास पाया जाता है। एक कथा के अनुसार माता लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान निकले रत्नों के साथ हुई थी, लेकिन दूसरी कथा के अनुसार वे भृगु ऋषि की बेटी हैं।   दरअसल, पुराणों की कथा में छुपे रहस्य को जानना थोड़ा मुश्किल होता है, इसे समझना जरूरी है। आपको शायद पता ही होगा कि शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के माता-पिता का नाम सदाशिव और दुर्गा बताया गया है। उसी तरह तीनों देवियों के भी माता-पिता रहे हैं। समुद्र मंथन से जिस लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी, दरअसल वह स्वर्ण के पाए जाने के ही संकेत रहा हो।   *जन्म समय :शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को उनकी पूजा की जाती है। *नाम :देवी लक्ष्मी। *नाम का अर्थ :'लक्ष्मी' शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- एक 'लक्ष्य' तथा दूसरा 'मी' अर्थात लक्ष्य तक ले जाने वाली देवी लक्ष्मी। अन्य नाम :श्रीदेवी, कमला, धन्या, हरिवल्लभी, विष्णुप्रिया, दीपा, दीप्ता, पद्मप्रिया

अथ श्री श्रीविष्णु सहस्त्रनामावलिः

।। अथ श्री श्रीविष्णु सहस्त्रनामावलिः ।। 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 १. ॐ विश्वस्मै नमः ।। २.ॐ विष्णवे नमः । ३. ॐ वषट्‍काराय नमः । ४. ॐ भूतभव्यभवत्प्रभवे नमः । ५. ॐ भूतकृते नमः । ६. ॐ भूतभृते नमः । ७. ॐ भावाय नमः । ८. ॐ भूतात्मने नमः । ९. ॐ भूतभावनाय नमः । १०. ॐ पूतात्मने नमः । ११. ॐ परमात्मने नमः । १२. ॐ मुक्तानां परमायै गतये नमः । १३. ॐ अव्ययाय नमः । १४. ॐ पुरुषाय नमः । १५. ॐ साक्षिणे नमः । १६. ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः । १७. ॐ अक्षराय नमः । १८. ॐ योगाय नमः । १९. ॐ योगिविदां नेत्रे नमः । २०. ॐ प्रधानपुरुषेश्वराय नमः । २१. ॐ नारसिंहवपुषे नमः । २२. ॐ श्रीमते नमः । २३. ॐ केशवाय नमः । २४. ॐ पुरुषोत्तमाय नमः । २५. ॐ सर्वस्मै नमः । २६. ॐ शर्वाय नमः । २७. ॐ शिवाय नमः । २८. ॐ स्थाणवे नमः । २९. ॐ भूतादये नमः । ३०. ॐ निधयेऽव्ययाय नमः । ३१. ॐ समभवाय नमः । ३२. ॐ भावनाय नमः । ३३. ॐ भर्त्रे नमः । ३४. ॐ प्रभवाय नमः । ३५. ॐ प्रभवे नमः । ३६. ॐ ईश्वराय नमः । ३७. ॐ स्वयम्भुवे नमः । ३८. ॐ शम्भवे नमः । ३९. ॐ आदित्याय नमः । ४०. ॐ पुष्कराक्षाय नमः । ४१. ॐ महास्वनाय नमः । ४२. ॐ अनादिनिधनाय नमः । ४३. ॐ धात्रे नमः । ४४. ॐ विधात्

प्रश्न : ईश्वर ने सभी मनुष्यों को कुछ नैसर्गिक वृत्ति और सहज ज्ञान दिया है | यह सभी पुस्तकों से बेहतर है क्योंकि इसी से हम सब कुछ समझ सकते हैं, इस ज्ञान के विकास के साथ कुछ लोगों ने वेदों की रचना करना सीख लिया हो, ऐसा हो सकता है | वेद, ईश्वर से ही अवतरित हुए हैं, ऐसा मानना क्यों आवश्यक है ?

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------- शंका : ईश्वर ने सभी मनुष्यों को कुछ नैसर्गिक वृत्ति और सहज ज्ञान दिया है | यह सभी पुस्तकों से बेहतर है क्योंकि इसी से हम सब कुछ समझ सकते हैं, इस ज्ञान के विकास के साथ कुछ लोगों ने वेदों की रचना करना सीख लिया हो, ऐसा हो सकता है | वेद, ईश्वर से ही अवतरित हुए हैं, ऐसा मानना क्यों आवश्यक है ? – १.क्या जंगली जनजातियों और शिक्षा के अभाव में अकेले जंगल में पले बच्चे के पास उनका सहज ज्ञान नहीं था ? फ़िर भी वो विद्वान या समझदार क्यों न हुए ? २.भाषा भी वेदों से ही मिली है लेकिन वेदों पर विश्वास के अभाव में भाषा की उत्पत्ति भी आधुनिक और शंकाशील वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य रह जाता है | ३.हम शाला में जा कर और हम से बड़ों से पाठ पढ़ कर भी सीखते रहते हैं तो फ़िर शुरू के समय में लोग इतना सब कैसे सीख सकते हैं कि उन वेदों को बना सकें – जिस में बहुत सारे मंत्र हों और वो भी उस भाषा में जो अन्य किसी भी भाषा से परिपूर्ण और विस्तृत है और जिस में विविध और महत्वपूर्ण विषयों पर गहन विचार हों और जो बाद के

पूजा विधि में वस्त्र निषेध

देव उपासना में निषिद्ध वस्त्र “( न स्यूते न दग्धेन पारक्येन विशेषतः | मूषिकोत्कीर्ण जीर्णेन कर्म कुर्याद्विचक्षणः ||महा भा०||)” सिले हुए वस्त्र से , जले हुए वस्त्र से, विशेषकर दूसरे के वस्त्र से, चूहे से कटे हुए वस्त्र से धर्मकार्य नहीं करना चाहिए. “(जीर्णं नीलं संधितं च पारक्यं मैथुने धृतम् | छिन्नाग्रमुपवस्त्रं च कुत्सितं धर्मतो विदुः ||आचारादर्शे नृसिंहपुराणवचन)” जीर्ण, नीला, सीला हुआ, दूसरे का, संभोगावस्था में पहना हुआ, जिसका तत्र भाग कटा हो एवं छोर रहित वस्त्र धर्मकी दृष्टि से धारण न करें, “(अहतं यन्त्र निर्मुक्तं वासः प्रोक्तं स्वयंभुवा | शस्तं तन् मांगलिक्येषु तावत् कालं न सर्वदा ||कश्यपः||)” यन्त्र(मील) से निकले हुए बने हुए वस्त्र को “अहत” वस्त्र माना हैं | वह यन्त्र से निकला हुआ कपड़ा विवाह आदि मांगलिक कार्य में उतने ही समय तक ठीक हैं, हमेशा के लिए नहीं. “( अन्यत्र यज्ञादौ तु इषद्धौतमिति | #न_च_यज्ञादिकमपि #मांगलिक्यमेवेत्याशंकनीयम् / विवाहोत्सवादेरैहिकसुखस्याभ्युदयस्य च मांगलिकत्वात् / यज्ञोदेस्तु #धर्मरूपादृष्टफलदत्वेन मांगलिकत्वाभावात् ” ||मदन पारि० शातातपः || )” म०पारि ग्र

वेदों में अवतार वाद समर्थन

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------- विशेष अवश्य पढ़ें-------  हिन्दू समाज में ईश्वर के विभिन्न अवतारो की मान्यता है । बहुत सारे नवविद्वानो ने अवतार वाद का खंडन भी किया है अपनी बुद्धि से । पुराणों में अवतार परिचर्चा कथात्मक रुप में है तथा जनमानस में फैलाव का यही कारण है । कुछ विद्वान केवल वेदों को मानते हैं , और वैदिक मान्यता से ही अवतार वाद का खंडन तथा ईश्वर के निर्गुण होने का दावा भी करते हैं !!! क्या वैदिक वाङ्गमय में अवतार तथा ईश्वर के सगुण रुप की चर्चा नहीं है ? अवश्य है ।वेदों के अवतार तत्वों के बीज को ही उपबृहण कर पुराणों में आख्यान रुप में विस्तार हुआ है । जैसे – शतपथ ब्राह्मण (1/8/1/1-6)-मनु तथा महामत्स्य का प्रसंग है जिससे मत्स्यावतार कथा का विस्तार हुआ । तैत्तरीय आरण्यक-प्रजापति का कूर्म रुप ही सहस्रशीर्षा पुरुष: रुप में प्रकट हुआ । तैत्तरीय ब्राह्मण (1/1/3/6)-प्रजापति ने वाराह रुप धारणकर धरती को जल से बाहर निकाला । ऋग्वेद(8/14/13)-नमुचि दैत्य का मस्तक इन्द्र ने जल के फेन से उडाया , इस कथा का विस्तार ही

ब्राह्मणों का कल्याण मार्ग

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------- गृहस्थ ब्राह्मणों का कर्तव्य- हरेक गृहस्थ ब्राह्मण का कर्तव्य है कि सायं प्रातः अग्निहोत्र करे (अहरहः स्वाहा कुर्यात् / अग्निहोत्रं जुहूयात् ) अग्निहोत्री को ही तो संन्यास लेने का भी अधिकार है न, वही अग्निवस्त्र (भगवा)धारी( संन्यस्त ब्राह्मण) ही तो इस चौरासी लाख अरों वाले भवचक्रव्यूह से पार उतर कर मोक्ष पाने का अधिकारी होगा ! अब जो शास्त्र की आज्ञा पालन नहीं करते, उनकी बात तो छोड़ दीजिये , उनकातोमहिषवाहन यमराज नामक देवता ही भगवान् है, जो करना चाहते हैं पर विवाह के समय अग्नि को सम्भालना है, ध्यान ही नहीं रहा किसी विशेष कारणवश , या फिर ध्यान तो रहा पर परिस्थियों के विपरीत होने से कुछ कर नहीं पाये , अब क्या होगा उनका? तो शास्त्र ने मार्ग दिया कि जिस समय आपके पिता दायभाग काबंटवारा करेंगे , तब करना आरम्भ अग्निहोत्र , पर दाय भाग भी हो गया या हो या न हो , परिस्थितियॉ ही ऐसी हैं कि चाहकर भी नहीं कर पाते, उनका क्या होगा ? तब शास्त्र पुनः सन्मार्ग देकर कहा, जो ब्राह्मण अग्निहोत्री नहीं ह

कबित्त

ज्ञान घटै किये मूढ की संगत ,ध्यान घटै बिन धीरज लाए । प्रीति घटै परदेस बसे अरु ,मान घटे नित ही नित जाये।। सोक घटै कोउ साधु की संगत ,रोग घटे कोउ औषध पाये। "गंग" कहे सुनु शाह अकबर ,पाप कटे हरि के गुन गाये।। ( गंग कवि)

अथ श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रम्

श्रीगणेशाय नमः । श्रीउमामहेश्वराभ्यां नमः । श्रीगुरवे नमः । श्रीभैरवाय नमः ॥ अथ श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रम् । ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधृतदण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरं लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नृत्यकरम् । डमरुध्वनिशङ्खं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरं भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं भैरववेषं कष्टहरम् ॥ १॥ चर्चितसिन्दूरं रणभूविदूरं दुष्टविदूरं श्रीनिकरं किङ्किणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्प्परसावं पुण्यभरम् । करुणामयवेशं सकलसुरेशं मुक्तसुकेशं पापहरं भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ २॥ कलिमलसंहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीघ्रकरं कलुषं शमयन्तं परिभृतसन्तं मत्तदृगन्तं शुद्धतरम् । गतिनिन्दितकेशं नर्तनदेशं स्वच्छकशं सन्मुण्डकरं भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ॥ ३॥ कठिनस्तनकुम्भं सुकृतं सुलभं कालीडिम्भं खड्गधरं वृतभूतपिशाचं स्फुटमृदुवाचं स्निग्धसुकाचं भक्तभरम् । तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरं भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ॥ ४॥ ललिताननचन्द्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरं सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पुष्टिकरम् । वरदाभयहारं तरलिततारं क्

सम्मोहन क्या है

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●     ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●                    सम्मोहन क्या ? ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------- एक अद्भुत परन्तु बहुत बुरी विद्या माना जाता है। सम्मोहन का नाम लेते ही लोग इस तरह रिएक्ट करते हैं जैसा कि उनके सामने साक्षात शैतान आ गया हो। ऐसा जनसामान्य में फैले अंधविश्वास तथा गलत कहानियों के चलते होता है। हालांकि इसमें ऐसा कुछ भी गलत नहीं है वरन वर्तमान में तो हिप्नोसिस का प्रयोग मानसिक तथा शारीरिक बीमारियों को ठीक करने में किया जाता है। डॉक्टर कर रहे हैं बीमारियां दूर करने में सम्मोहन का प्रयोग यूरोप, अमरीका सहित दुनिया भर के तमान विकसित देशों में हिप्नोसिस पर रिसर्च की जा रही है और इसका उपयोग बढ़ता जा रहा है। वर्तमान में इसका उपयोग बुरी आदतों को बदलने, पिछले जन्म की याद दिलाने, तनाव व डिप्रेशन दूर करने तथा अन्य मानसिक बीमारियों को ठीक करने में किया जा रहा है। फिर भी लोगों के मन से इसका डर नहीं जा रहा है। आइए जानते हैं सम्मोहन के बारे में फैले हुए ऐसे ही कुछ तथ्य जो हर आदमी को जानने चाहिए। (1) किसी भी व्यक्ति को उसकी मर्जी के बिना सम्मोहित