*नारायणबलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी श्राद्ध।* प्रस्तुत लेख में ‘नारायणबली, नागबलि व त्रिपिंडी श्राद्ध’ के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन पढें । इसमें मुख्य रुप से इन विधियों के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण सूचनाएं, विधि का उद्देश्य, योग्य काल, योग्य स्थान, विधि करने की पद्धति एवं विधि करने से हुई अनुभूतियों का समावेश है । १. नारायणबलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी श्राद्ध से संबंधित महत्त्वपूर्ण सूचनाएं। *१ अ. शास्त्र* ये अनुष्ठान अपने पितरों को (उच्च लोकों में जाने हेतु) गति मिले, इस उद्देश्य से किए जाते हैं । शास्त्र कहता है कि उसके लिए ‘प्रत्येक व्यक्ति अपनी वार्षिक आय का १/१० (एक दशांश) व्यय करे’। यथाशक्ति भी व्यय किया जा सकता है। १ आ. ये अनुष्ठान कौन कर सकता है ? १. ये काम्य अनुष्ठान हैं । यह कोई भी कर सकता है । जिसके माता-पिता जीवित हैं, वह भी कर सकते हैं । २. अविवाहित भी अकेले यह अनुष्ठान कर सकते हैं । विवाहित होने पर पति-पत्नी बैठकर यह अनुष्ठान करें । १ इ. निषेध १. स्रियों के लिए माहवारी की अवधि में ये अनुष्ठान करना वर्जित है । २. स्त्री गर्भावस्था में ५वें मास के पश्चात यह अन
देवो के देव महादेव को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं, अतिशीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त की इच्छा पूर्ण करने वाले शिव शंकर को भोलेनाथ भी कहते है, तंत्राधिपति बाबा महाकाल की अनेक तांत्रिक मंत्रों द्वारा की जाने वाली साधना भी देव पूजा ही कहलाती हैं । तंत्र मंत्रों में से एक है शिव शाबर मन्त्र, तंत्र शास्त्र के अनुसार इस मंत्र की साधना से भगवान महाकाल शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, और अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते है ।