सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नारायणबलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी श्राद्ध

*नारायणबलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी श्राद्ध।* प्रस्तुत लेख में ‘नारायणबली, नागबलि व त्रिपिंडी श्राद्ध’ के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन पढें । इसमें मुख्य रुप से इन विधियों के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण सूचनाएं, विधि का उद्देश्य, योग्य काल, योग्य स्थान, विधि करने की पद्धति एवं विधि करने से हुई अनुभूतियों का समावेश है । १. नारायणबलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी श्राद्ध से संबंधित महत्त्वपूर्ण सूचनाएं। *१ अ. शास्त्र* ये अनुष्ठान अपने पितरों को (उच्च लोकों में जाने हेतु) गति मिले, इस उद्देश्य से किए जाते हैं । शास्त्र कहता है कि उसके लिए ‘प्रत्येक व्यक्ति अपनी वार्षिक आय का १/१० (एक दशांश) व्यय करे’। यथाशक्ति भी व्यय किया जा सकता है। १ आ. ये अनुष्ठान कौन कर सकता है ? १. ये काम्य अनुष्ठान हैं । यह कोई भी कर सकता है । जिसके माता-पिता जीवित हैं, वह भी कर सकते हैं । २. अविवाहित भी अकेले यह अनुष्ठान कर सकते हैं । विवाहित होने पर पति-पत्नी बैठकर यह अनुष्ठान करें । १ इ. निषेध १. स्रियों के लिए माहवारी की अवधि में ये अनुष्ठान करना वर्जित है । २. स्त्री गर्भावस्था में ५वें मास के पश्चात यह अन

सुख-समृद्धि देने वाले पांच देवता

सुख-समृद्धि देने वाले पांच देवता एक परम प्रभु चिदानन्दघन परम तत्त्व हैं सर्वाधार । सर्वातीत, सर्वगत वे ही अखिल विश्वमय रुप अपार। हरि, हर, भानु, शक्ति, गणपति हैं इनके पांच स्वरूप उदार। मान उपास्य उन्हें भजते जन भक्त स्वरुचि श्रद्धा अनुसार। (पद-रत्नाकर) निराकार ब्रह्म के साकार रूप हैं पंचदेव!!!!!! परब्रह्म परमात्मा निराकार व अशरीरी है, अत: साधारण मनुष्यों के लिए उसके स्वरूप का ज्ञान असंभव है । इसलिए निराकार ब्रह्म ने अपने साकार रूप में पांच देवों को उपासना के लिए निश्चित किया जिन्हें पंचदेव कहते हैं । ये पंचदेव हैं—विष्णु, शिव, गणेश, सूर्यऔर शक्ति। आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम् । पंचदैवतभित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् ।। एवं यो भजते विष्णुं रुद्रं दुर्गां गणाधिपम् । भास्करं च धिया नित्यं स कदाचिन्न सीदति ।। (उपासनातत्त्व) अर्थात्—सूर्य, गणेश, देवी, रुद्र और विष्णु—ये पांच देव सब कामों में पूजने योग्य हैं, जो आदर के साथ इनकी आराधना करते हैं वे कभी हीन नहीं होते, उनके यश-पुण्य और नाम सदैव रहते हैं । वेद-पुराणों में पंचदेवों की उपासना को महाफलदायी और उसी तरह आवश्यक बतलाया

सत्यनारायण भगवान

सत्यनारायण : भविष्य पुराण ३.२.२८-२९ में दी गई सत्यनारायण की कथा तथा लोक में प्रचलित सत्यनारायण की कथा में बहुत कम अन्तर है । भविष्य पुराण के अनुसार साधु वणिक् ने मणिपुर के राजा चन्द्रचूड द्वारा पारित सत्यनारायण व्रत को देखा और उसका प्रसाद ग्रहण किया जिससे उसे कलावती नामक कन्या प्राप्त हुई । कालान्तर में कलावती का विवाह शंखपति से हुआ । शेष कथा लोक में प्रचलित कथा जैसी ही है । लेकिन भविष्य पुराण में इस कथा के स्रोत के संकेत भी दिए गए हैं । एक स्थान पर कहा गया है कि मख और धर्म, यह दो मुख्य रूप से करणीय हैं । मख का अर्थ दिया गया है - स्वधा और स्वाहा द्वारा देवों का यजन करना और धर्म का अर्थ दिया गया है - विप्र और अतिथि को दान । यह कथन इस कथा के मूल को उद्घाटित करता है । नारायण नामक ऋषि वाले ऋग्वेद १०.९०.१६( पुरुष सूक्त) की ऋचा है - यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् । ते ह नाकं महिमान: सचन्ते यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा: ।। इससे पहली ऋचा देवों द्वारा यज्ञ हेतु पुरुष पशु को बांधने की है । उपरोक्त ऋचा में भी सत्यनारायण की कथा की भांति यज्ञ और धर्म दो मुख्य शब्द हैं । ज