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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऋतु निर्णय

*ऋतुचर्या - ऋतु अनुसार आहार- विहार*                                                    ऋतुचर्या  मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ हैं : शीत ऋतु , ग्रीष्म ऋतु , वर्षा ऋतु ! आयुर्वेद के मत अनुसार छ : ऋतुएँ मानी गयी हैं : वसन्त , ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर ! महर्षि सुश्रुत ने वर्ष के १२ मास इन ऋतुओं में  विभक्त कर दिए हैं ! *वर्ष के दो भाग होते हैं जिसमें पहले भाग आदान काल में सूर्य उत्तर की ओर गति करता है तथा दूसरे भाग विसर्ग काल में सूर्य दक्षिण की ओर  गति करता है !*  *आदान काल में शिशिर, वसंत एवं ग्रीष्म ऋतुएं और विसर्ग काल में वर्षा एवं हेमंत ऋतुएं होती हैं  आदान के समय सूर्य बलवान और चंद्र क्षीणबल रहता है ! शिशिर ऋतु  उत्तम बलवाली, वसंत माध्यम बलवाली और ग्रीष्म ऋतु दौर्बल्यवाली होती है ! विसर्ग काल में चंद्र बलवान और सूर्य  क्षीणबल रहता है ! चंद्र पोषण करनेवाला होता है ! वर्षा ऋतू दौर्बल्य वाली , शरद ऋतू मध्यम बल व् हेमंत ऋतु उत्तम बलवाली होती है !* *वसंत ऋतू :* शीत  व् ग्रीष्म ऋतु का संधिकाल वसन्त ऋतू होता है ! इस समय न अधिक सर्दी होती है और न अधिक गर्मी ! इस मौसम में सर्वत्र मनमोहक

यग्योपवित निर्णय

क्यों पहनते हैं जनेऊ और क्या है इसके लाभ, जानिए????? 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ भए कुमार जबहिं सब भ्राता।  दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥ गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई।  अलप काल बिद्या सब आई॥ भावार्थ:-ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। श्री रघुनाथजी (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं॥ जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं। इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। 'उपनयन' का अर्थ है, 'पास या सन्निकट ले जाना।' किसके पास? ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म।    क्यों पहनते हैं जनेऊ👉 हिन्दू धर्म के सोलह संस्कारों में से एक 'उपनयन संस्कार' के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है जिसे 'यज्ञोपवीत संस्कार' भी कहा जाता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। प्राचीनकाल में पहले शिष्य, सं

आईना देना वर्जित

सुबह उठते ही चेहरा आईने में ना देखें, नकारात्मक ऊर्जा का पूरे दिन रहेगा प्रभाव 〰〰🌸〰〰🌸〰〰🌸〰〰🌸〰〰🌸〰〰 अक्सर सुबह उठते ही अपना चेहरा आईने में देखने की लोगों की आदत होती है. वास्तु के अनुसार हमें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए. इसके पीछे कारण यह है कि ऐसा करने से दिनभर आप पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव रह सकता है. किसी और का भी चेहरा ना देखें कहा तो यह भी जाता है कि आंख खुलते ही किसी और का भी चेहरा देखने से खुद को बचाना चाहिए. जान लें कि दिन की शुरुआत के साथ सबसे पहले अपने ईष्ट देवता का ध्यान करना ना भूलें और उठते ही सबसे पहले उनके दर्शन करें. अपनी हथेली को देखें कोशिश करें कि सुबह नींद से उठने के साथ ही सबसे पहले अपनी दोनों हथेलियों को मिला लें और फिर उन्हें देखें, साथ ही भगवान का ध्यान भी करें. ऐसा करने से आपके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी और आप पूरे दिन हमेशा खुश रहेंगे. शंख या मंदिर की घंटी सुनाई देना अगर आपके सुबह की शुरुआत शंख या मंदिर की घंटियों की आवाज से होती है, तो यह आपके भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है. इससे आपका पूरा दिन बहुत अच्छा व्यतित होता है. हंस या फूल का दिखना ऐसा बहुत कम

भगवान भास्कर

आज हम आपको भगवान भाष्कर के बारे में विस्तार से बतायेगें!!!!!• वैदिक और पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान श्री सूर्य समस्त जीव-जगत के आत्मस्वरूप हैं। ये ही अखिल सृष्टि के आदि कारण हैं। इन्हीं से सब की उत्पत्ति हुई है। पौराणिक सन्दर्भ में सूर्यदेव की उत्पत्ति के अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। यद्यपि उनमें वर्णित घटनाक्रमों में अन्तर है, किन्तु कई प्रसंग परस्पर मिलते-जुलते हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। वे महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। अदिति के पुत्र होने के कारण ही उनका एक नाम आदित्य हुआ। पैतृक नाम के आधार पर वे काश्यप प्रसिद्ध हुए। संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है- एक बार दैत्य-दानवों ने मिलकर देवताओं को पराजित कर दिया। देवता घोर संकट में पड़कर इधर-उधर भटकने लगे। देव-माता अदिति इस हार से दु:खी होकर भगवान सूर्य की उपासना करने लगीं। भगवान सूर्य प्रसन्न होकर अदिति के समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने अदिति से कहा- देवि! तुम चिन्ता का त्याग कर दो। मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा तथा अपने हज़ारवें अंश से तुम्हारे उदर से प्रकट होकर ते

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित 〰️〰️🌸〰️〰️🌸🌸〰️〰️🌸〰️〰️ वाल्मीकि रामायण के अनुसार “आदित्य हृदय स्तोत्र” अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्री राम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु दिया गया था. आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ जीवन के अनेक कष्टों का एकमात्र निवारण है. इसके नियमित पाठ से मानसिक कष्ट, हृदय रोग, तनाव, शत्रु कष्ट और असफलताओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है. इस स्तोत्र में सूर्य देव की निष्ठापूर्वक उपासना करते हुए उनसे विजयी मार्ग पर ले जाने का अनुरोध है. आदित्य हृदय स्तोत्र सभी प्रकार के पापों , कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति कराने वाला, सर्व कल्याणकारी, आयु, उर्जा और प्रतिष्ठा बढाने वाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है. विनियोग 〰️〰️〰️ ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः पूर्व पिठिता 〰️〰️〰️ ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥ दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस

उपनिषदों की संख्या कितनी है?

*ईशादि १०८ उपनिषदों की सूची* - १.ईश = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद् २.केन उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद् ३.कठ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद् ४.प्रश्‍न उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद् ५.मुण्डक उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद् ६.माण्डुक्य उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद् ७.तैत्तिरीय उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद् ८.ऐतरेय उपनिषद् = ऋग् वेद, मुख्य उपनिषद् ९.छान्दोग्य उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद् १०.बृहदारण्यक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद् ११.ब्रह्म उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद् १२.कैवल्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद् १३.जाबाल उपनिषद् (यजुर्वेद) = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद् १४.श्वेताश्वतर उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद् १५.हंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद् १६.आरुणेय उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद् १७.गर्भ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद् १८.नारायण उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद् १९.परमहंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद् २०.अमृत-बिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद् २१.अम

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित

आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी अनुवाद सहित 〰️〰️🌸〰️〰️🌸🌸〰️〰️🌸〰️〰️ वाल्मीकि रामायण के अनुसार “आदित्य हृदय स्तोत्र” अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्री राम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु दिया गया था. आदित्य हृदय स्तोत्र का नित्य पाठ जीवन के अनेक कष्टों का एकमात्र निवारण है. इसके नियमित पाठ से मानसिक कष्ट, हृदय रोग, तनाव, शत्रु कष्ट और असफलताओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है. इस स्तोत्र में सूर्य देव की निष्ठापूर्वक उपासना करते हुए उनसे विजयी मार्ग पर ले जाने का अनुरोध है. आदित्य हृदय स्तोत्र सभी प्रकार के पापों , कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति कराने वाला, सर्व कल्याणकारी, आयु, उर्जा और प्रतिष्ठा बढाने वाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है. विनियोग 〰️〰️〰️ ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः पूर्व पिठिता 〰️〰️〰️ ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥ दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस

सूर्य देव (आदित्य) के 12 स्वरूप, जानिए इनके नाम और काम

सूर्य देव (आदित्य) के 12 स्वरूप, जानिए इनके नाम और काम  〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ हिंदू धर्म में प्रमुख रूप से 5 देवता माने गए हैं। सूर्यदेव उनमें से एक हैं। भविष्यपुराण में सूर्यदेव को ही परब्रह्म यानी जगत की सृष्टि, पालन और संहार शक्तियों का स्वामी माना गया है। भगवान सूर्य जिन्हें आदित्य के नाम से भी जाना जाता है, के 12 स्वरूप माने जाते है, जिनके द्वारा ये उपरोक्त तीनो काम सम्पूर्ण करते है।आइए जानते है क्या है इन 12 स्वरूप के नाम और क्या है इनका काम। ✡ इन्द्र :- भगवान सूर्य (आदित्य) के प्रथम स्वरुप का नाम इंद्र है। यह देवाधिपति इन्द्र को दर्शाता है। इनकी शक्ति असीम हैं। दैत्य और दानव रूप दुष्ट शक्तियों का नाश और देवों की रक्षा का भार इन्हीं पर है। ✡ धाता :- भगवान सूर्य (आदित्य) के दूसरे स्वरुप का नाम धाता है। जिन्हें श्री विग्रह के रूप में जाना जाता है। यह प्रजापति के रूप में जाने जाते हैं जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है, सामाजिक नियमों का पालन ध्यान इनका कर्तव्य रहता है। इन्हें सृष्टि कर्ता भी कहा जाता है। ✡ पर्जन्य :- भगवान सूर्य (आदित्य) के तीसरे स्वरुप का नाम

यज्ञीय पदार्थ तथा पात्र परिचय

यज्ञीय पदार्थ तथा पात्र परिचय 〰️〰️🔸〰️〰️〰️🔸〰️〰️   श्रौत-स्मार्त्त यज्ञों में विविध प्रयोजनों के लिये पात्रों की आवश्यकता होती है । जिस प्रकार कुण्ड बनाया जाता है, उसी प्रकार इन यज्ञ-पात्रों को निश्चित वृक्षों के काष्ठ से, निर्धारित माप एवं आकार का बनाया जाता है । विधि पूर्वक बने यज्ञ-पात्रों का होना यज्ञ की सफलता के लिये आवश्यक है । नीचे कुछ यज्ञ-पात्रों का परिचय आवश्यक है । नीचे कुछ यज्ञ-पात्रों का परिचय दिया जा रहा है । इनका उपयोग विभिन्न यज्ञों में, विभन्न शाखाओं एवं सूत्र-ग्रंथों के आधार पर दिया जाता है। वेदों में इनका उल्लेख इस प्रकार मिलता है। (1)अग्निहोत्रहवणी 〰️〰️🔸🔸〰️〰️ अग्निहोत्रहवणी एक प्रकार की सूची का ही नाम है। यह बाहुमात्रलम्बी, आग्र हंसमुखी और चार अंगुल गर्त वाली होती है। इसमें स्रुवा से आज्य लेकर अग्निहोत्र किया जाता है, जिससे यह अग्निहोत्र-हवणी कही जाती है। स्फ्यशच कपालानि चाऽगिहोत्रहवर्णी च शूर्पं च कृष्णजिनं च शय्या चोलूखलं च मुसलं च दृषच्चोपला चैतानि वै दश यज्ञायुधानि...(तै.सं.1.6.8) (2)अतिग्राह्यपात्र 〰️〰️🔸〰️〰️ सोमाभिषव काल में दक्षिण शकट के पास तीन पात्र, ऐन्द

*ज्योतिषनुसार सूर्य अर्घ्य के आर्थिक एवं शारीरिक लाभ*

*ज्योतिषनुसार सूर्य अर्घ्य के आर्थिक एवं शारीरिक लाभ* 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भारतीय शास्त्रों के अनुसाए सूर्य देव को जल चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है. जी हां अक्सर आप अपनी समस्या लेकर जब किसी पंडित के पास जाते है, तो वो सबसे पहले सूर्य को अर्घ देने का उपाय ही सुझाते है. वही अगर किसी व्यक्ति की कुंडली मे सूर्य ग्रह मजबूत हो तो यह माना जाता है, कि वह व्यक्ति काफी गुणवान होता है. साथ ही समाज मे उसका बहुत मान सम्मान भी होता है. इसके इलावा वह बहुत प्रतिष्ठित भी होता है. ऐसे मे कुंडली मे सूर्य ग्रह को मजबूत रखना बेहद जरुरी है। वैसे महाभारत काल से ऐसा माना जाता है, कि कर्ण नियमित रूप से सूर्य देव की पूजा करते थे और सूर्य को जल का अर्घ भी देते थे. इसके इलावा सूर्य देव की पूजा के बारे मे भगवान् राम की कथा मे भी यह लिखा गया है, कि भगवान् राम हर रोज सूर्य देव की पूजा करते थे और अर्घ देते थे. वैसे कलयुग मे भी ऐसे बहुत से लोग है जो सूर्य देव को जल अर्पित करते है और उनकी पूजा करते है. गौरतलब है, कि सूर्य देव को अगर पूरी विधि के साथ जल चढ़ाया जाये तो इसके परिणाम और भी अच्छे होते है। यदि हम सूर्य द