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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दान की परिभाषा

*दान की परिभाषा और प्रकार* *द्विहेतु षड्धिष्ठानाम षडंगम च द्विपाक्युक् ।* *चतुष्प्रकारं त्रिविधिम त्रिनाशम दान्मुच्याते ।।* *सन्दर्भ* – राजा धर्म वर्मा दान का तत्व जानने की इच्छा से बहुत वर्षों तक तपस्या की, तब आकाशवाणी ने उनसे उपरोक्त श्लोक कहा । जिसका अर्थ है “दान के दो हेतु, छः अधिष्ठान, छः अंग, दो प्रकार के परिणाम (फल), चार प्रकार, तीन भेद और तीन विनाश साधन हैं, ऐसा कहा जाता है ।” यह एकमात्र श्लोक कह कर आकाशवाणी मौन हो गयी और राजा धर्म वर्मा के बार बार पूछने पर भी आकाशवाणी ने उसका अर्थ (विस्तार) नहीं बताया । तब राजा धर्म वर्मा ने ढिढोरा पिटवा कर घोषणा की कि  जो भी इस श्लोक की ठीक ठीक व्याख्या कर देगा उसे राजा सात लाख गाय, इतनी ही स्वर्ण मुद्रा तथा सात गाँव दिया जायेगा । कई ब्राह्मणों ने इस के लिए प्रयास किया पर कोई भी श्लोक की ठीक ठीक व्याख्या नहीं कर पाया । इस मुनादी को नारद जी ने भी सुना जो उन समय आश्रम बनाने के लिए पर्याप्त भूमि की तलाश में थे  इस दुविधा में थे की वह दान में  ली हुई भूमि और बिना राजा की भूमि पर आश्रम नहीं बनाना चाहते थे । वह केवल अपने द्वारा अर्जित भूमि पर ही आश

पितृ श्राद्ध अधिकारी

*श्राद्ध/पितर कर्म के अधिकारी* पिताका श्राद्ध करनेका अधिकार मुख्यरूपसे पुत्रको ही है। कई पुत्र होनेपर अन्त्येष्टि से लेकर एकादशाह तथा द्वादशाहतक की सभी क्रियाएँ ज्येष्ठ पुत्रको करनी चाहिये। विशेष परिस्थितिमें बड़े भाईकी आज्ञासे छोटा भाई भी कर सकता है। यदि सभी भाइयों का संयुक्त परिवार हो तो वार्षिक श्राद्ध भी ज्येष्ठ पुत्रके द्वारा एक ही जगह सम्पन्न हो सकता है। यदि पुत्र अलग-अलग हों तो उन्हें वार्षिक आदि श्राद्ध अलग-अलग करना चाहिये। *मृते पितरि पुत्रेण क्रिया कार्या विधानतः ।* *बहवः स्युर्यदा पुत्राः पितुरेकत्रवासिनः ॥* *सर्वेषां तु मतं कृत्वा ज्येष्ठेनैव तु यत्कृतम् ।* *द्रव्येण चाविभक्तेन सर्वैरेव कृतं भवेत् ॥(वीरमित्रोदय श्रा०प्र०में मरीचिका वचन)* *(ख) एकादशाद्या:क्रमशो ज्येष्ठस्य विधिवत् क्रियाः ।* *कुर्युनकैकश:श्राद्धमाब्दिकं तु पृथक् पृथक्॥(वीरमित्रोदय श्रा०प्र०में प्रचेताका वचन)* यदि पुत्र न हो तो शास्त्रोंमें श्राद्धाधिकारीके लिये विभिन्न व्यवस्थाएँ प्राप्त हैं। स्मृतिसंग्रह तथा श्राद्धकल्पलताके अनुसार श्राद्धके अधिकारी पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, दौहित्र (पुत्रीका पुत्र), पत्नी, भा

श्राद्ध प्रकरण

Iiश्राद्ध प्रकरण विचार- जीवितपितृक का अधिकार निर्णय-- जिसके पिता जीवित हों वह किसी भी तरहके श्राद्ध का अधिकारी नहीं होता है।वह तिल तर्पणका भी अधिकारी नहीं होताहै।इस संदर्भ में अनेक ऋषियों ने एक ही मत कहा है------ हारीत--जीवे पितरि वै पुत्र:श्राद्धकालं विवर्जयेत्। कात्यायन--सपितुः पितृकृत्येषु अधिकारो न विद्यते।  कौण्डिन्य-दर्शश्राद्धम् गयाश्राद्धम् श्राद्धं चापरपक्षिकम्। न  जीवितपितृक: कुर्यात्  तिलतर्पणमेव च ।। पिता के जीवित रहते भी अपनी मरी हुई माता का श्राद्ध पुत्र ही करता है।पुत्र रहित सौतेली माता का श्राद्ध, पुत्र हीन नाना,नानी,चाचा चाची का श्राद्ध वही करे।(ध्यान रहे पुत्र,पौत्र के अभाव में ही दूसरे सम्बन्धी का श्राद्ध अधिकार होता है।  जिसके पिता जीवित हों वह भी अपने पुत्र-पुत्री का संस्कार कर सकता है।ऐसे में वह संतानविवाह में नान्दीश्राद्ध कर्म कर सकता है।पुंसवन,सीमन्तोनयन में प्रयुक्त श्राद्धकर्म कर सकता है।  जिसकेपिताजीवितहों मातामरगयीहों वहपुत्रअपनी माता का गया श्राद्ध करनेका अधिकारी नहीं होता है। जिसके माता पिता जीवित हों और वह यदि महानदियों और तीर्थ पर जाये तो दादा,दादी का प

सामान्य पितृ तर्पण

पितृ तर्पण विधि - सर्वप्रथम अपने पास शुद्ध जल, बैठने का आसन (कुशा का हो), बड़ी थाली या ताम्रण (ताम्बे की प्लेट), कच्चा दूध, गुलाब के फूल, फूल-माला, कुशा, सुपारी, जौ, काली तिल, जनेऊ आदि पास में रखे।   आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करें।   ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: बोलें।   आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहन कर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प लें।    अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये।।   फिर थाली या ताम्र पात्र में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें। स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें। कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दें, इसी प्रकार ऋषियों को तर्पण दें।   फिर उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे ए

पितृ सूक्तम

।। पितृ-सूक्तम् ।।   उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।   असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥   अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।   तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥   ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।   तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥   त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।   तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥   त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।   वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥   त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।   तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥   बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।   तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥   आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।   बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥   उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।   तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्त

पित्र कवच

कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।   तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥   तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।   तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥   प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।   यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥   उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।   यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥   ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।   अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।   अग्नेष्ट्वा तेजसा सादयामि॥

फाल्गुन मास महात्म्य

1 मॉस सूर्य संक्रान्ति ( स्नान दान जप पित्र तर्पण अदि के लिए विशेष ) | 2 फाल्गुन मास  की  कृष्णाष्टमी  को  पितरो  का  तर्पण  या  दान  , जप  , स्नान  ये  सभी  अक्षय  फल  देते  है |  -  श्रीमद भगवत पुराण  3  व्यतिपात योग ( स्नान दान जप पित्र तर्पण अदि के लिए विशेष ) |  4  फाल्गुन  मॉस  की  अमावस्या  और   पूर्णिमा  मन्वंतर  तिथि  कही  गयी  है  इस  दिन  किये  गए  स्नान  दान  अदि  अक्षय  होते  है | - स्कन्द पुराण  5  फाल्गुन  शुक्ला  द्वितीया  को  भगवान  शिव  की  पूजा  करे  , श्वेत  पुष्पों  से  उनकी  पूजा  करे , पुष्पों  का  ही  श्रृंगार  करे  , पुष्पमय  चंदोवा  बनाये , फिर  धुप  दीप  नैवेद्य  अर्पण  करके  उन्हें  साष्टांग  प्रणाम  करके  प्रसन्न  करे  तो  वेह  रोग  मुक्ति  देते  है  और  १००  वर्ष  की  आयु  देते  है |  नारद पुराण

पित्र स्तोत्र अर्थ सहित

पितृस्तोत्र                                                               ।।रूचिरूवाच।। अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्। नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।। इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा। सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।। मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा। तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।। नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।। प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च। योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु। स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।। सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा। नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।। अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्। अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।। ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।। तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।      

अनुलोम-विलोम काव्य

अति दुर्लभ एक ग्रंथ ऐसा भी है हमारे सनातन धर्म मे। इसे तो सात आश्चर्यों में से पहला आश्चर्य माना जाना चाहिए --- यह है दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो राम कथा के रूप में पढ़ी जाती है और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण कथा के रूप में होती है । जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा (उल्टे यानी विलोम)के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ "राघवयादवीयम।" उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः । रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥ अर्थातः मैं उन भगव

नवरात्रि हवन विधी(सामान्य)

नवरात्रि की पूजा में हवन का बड़ा महत्व है. सभी व्रती हवन जरूर करते हैं.  हवन की तिथि यानी नवमी तिथि आने से पूर्व एक चिंता भी हो जाती है कि नवरात्रि हवन कैसे करें. कोई योग्य वेदपाठी ब्राह्मण उपलब्ध नहीं होने पर वे परेशान रहते हैं. नवरात्रि में जिन लोगों ने कलश स्थापना की है उन्हें हवन के लिए परेशान होने की आवश्यकता नहीं. वे स्वयं भी हवन कर सकते हैं. यदि आपने कोई मंत्र जप संकल्पित होकर नवरात्रि में किया है तो उसका दशांश हवन कर देना चाहिए. कोई भी जप चाहे नवरत्रि का हो किसी और काल का वह बिना दशांश हवन के पूर्ण नहीं होता.  लेकिन यदि कोई विशेष मंत्र संकल्प के साथ नहीं जपा है आपने तो इसकी आवश्यकता नहीं.   दशांश हवन का अर्थ होता है कि जितना जप किया है उसका दस प्रतिशत हवन कर देना. यानी आपने यदि सवा लाख मंत्र जपे हैं तो दस प्रतिशत. यानी 12,500 आहुतियां उसी मंत्र को पढ़ते हुए दें. परंतु ये बाध्यता तभी है जब आपने संकल्प लेकर जप आरंभ किया था. यदि संकल्प लेकर आरंभ नहीं किया था तो यह बाध्यता नहीं है. अगर यथासंभव हवन कर दिया जाए तो अच्छा ही है. शास्त्रों में एक और मार्ग बताया गया है. यदि साढ़े बारह हज

सामान्य उपासना विधि

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  पूजन व पाठ की प्रारंभिक प्रक्रिया  *  आसन पर बैठने से पहले - पूर्व निर्देश अनुसार धूणी व दिव्य जल से शुद्धिकरण पवित्रीकरण की प्रकिर्या पूरी करे फिर आसन पर बैठे ।  * पवित्रीकरण - इस मन्त्र को बोलकर जल छिड़के- ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वा वस्थाम् गतोअपि वा । य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षम् स बाह्याभ्यंतर: शुचि : ।। * आचमन - अब सीधे हाथ की हथेली में जल लेकर निम्न मंत्र बोलकर 3 बार आचमन कीजिये ।  ॐ केशवाय नमः , ॐ नारायणाय नमः , ॐ माधवाय नमः ॐ ऋषिकेशाये नमः - बोलकर हाथ धो ले। 4 - आसन व पृथ्वी पूजन - अब थोड़ा सा जल आसन के सामने पृथ्वी पर छोड़े और ॐ ह्रीम् आधार शक्ति कमलासनाय नमः , गन्ध अक्षतम् सम्पूज्येत । बोलकर आसन व पृथ्वी का पूजन कीजिये।   5 दीप देवता पूजन - ॐ ह्रीम् दीपस्थ देवता भ्यो नमः , गन्ध अक्षतम् सम्पूज्येत ।  बोलकर दीपक का पूजन कीजिये । 6 वरुणदेव पूजन - ॐ ह्रीं अपां पतये वरुण देवताभ्यो नमः , गन्ध अक्षतम् सम्पूज्येत । बोलकर जल पात्र / कलश या लौटे आदि में गंगा आदि नदियों तीर्थो का ध्यान करके वरुण द

प्राचीन संस्कार

*हमारे प्राचीन संस्कार* (यह ज्ञान अपनों बच्चों को जरूर बताऐं | मेहनत से यह सब एकत्रित किया है) 10 कर्तव्य:-* 1.संध्यावंदन, 2.व्रत, 3.तीर्थ, 4.उत्सव, 5.दान, 6.सेवा 7.संस्कार, 8.यज्ञ, 9.वेदपाठ, 10.धर्म प्रचार।...क्या आप इन सभी के बारे में विस्तार से जानते हैं और क्या आप इन सभी का अच्छे से पालन करते हैं? 10 सिद्धांत:-* 1.एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति (एक ही ईश्‍वर है दूसरा नहीं), 2.आत्मा अमर है, 3.पुनर्जन्म होता है, 4.मोक्ष ही जीवन का लक्ष्य है, 5.कर्म का प्रभाव होता है, जिसमें से ‍कुछ प्रारब्ध रूप में होते हैं इसीलिए कर्म ही भाग्य है, 6.संस्कारबद्ध जीवन ही जीवन है, 7.ब्रह्मांड अनित्य और परिवर्तनशील है, 8.संध्यावंदन-ध्यान ही सत्य है, 9.वेदपाठ और यज्ञकर्म ही धर्म है, 10.दान ही पुण्य है। महत्वपूर्ण 10 कार्य :* 1.प्रायश्चित करना, 2.उपनयन, दीक्षा देना-लेना, 3.श्राद्धकर्म, 4.बिना सिले सफेद वस्त्र पहनकर परिक्रमा करना, 5.शौच और शुद्धि, 6.जप-माला फेरना, 7.व्रत रखना, 8.दान-पुण्य करना, 9.धूप, दीप या गुग्गल जलाना, 10.कुलदेवता की पूजा। 10 उत्सव :* नवसंवत्सर, मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, पोंगल-ओणम, होली, द

उपचार निर्णय

*उपचारों की संख्या* उपचारों की संख्या पर शास्त्रों में अनेक विचार समुपलब्ध होते है परशुरामकल्पसूत्र के परिशिष्ट में एक से लेकर बहत्तर उपचारों तक का वर्णन मिलता है। सम्प्रति क्रमश: इनका वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा *१. एकोपचार –* यदि अधिक उपचार उपलब्ध न हो तो एकोपचार से भी पूजन करने का विधान है। केवल पुष्प, अक्षत या जल के द्वारा भी पूजन की विधि का प्रमाण मिलता है - केवलेनैव पुष्पेण भक्त्या देवं प्रपूजयेत् । केवलेनाक्षतेनैव केवलेन जलेन वा ।। *२. दो उपचार -*  दो उपचारों में गन्ध एवं पुष्प को माना गया है - “द्वावुपचारौ गन्धपुष्पाभ्याम्" (श०क०) *३. तीन उपचार -*  धूप, दीप के अतिरिक्त पंचोपचार में से तीन उपचार प्रमुख है - गन्ध, पुष्प एवं नैवेद्य । यदि पंचोपचार उपलब्ध न हो तो उपर्युक्त तीन उपचारों से पूजा का सम्पादन किया जा सकता है- "त्र्युपचाराधूपदीपौ विना यदि" (श०क०) *४. पंचोपचार –* पूजा में पंचोपचार का विशेष महत्त्व है। पंचोपचार में किन उपचारों का समावेश किया जाए, यह विचारणीय है। प्रायः पंचोपचार में गन्ध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य को ही माना जाता है। जैसा कि विश्वामित्र संहित