*दान की परिभाषा और प्रकार* *द्विहेतु षड्धिष्ठानाम षडंगम च द्विपाक्युक् ।* *चतुष्प्रकारं त्रिविधिम त्रिनाशम दान्मुच्याते ।।* *सन्दर्भ* – राजा धर्म वर्मा दान का तत्व जानने की इच्छा से बहुत वर्षों तक तपस्या की, तब आकाशवाणी ने उनसे उपरोक्त श्लोक कहा । जिसका अर्थ है “दान के दो हेतु, छः अधिष्ठान, छः अंग, दो प्रकार के परिणाम (फल), चार प्रकार, तीन भेद और तीन विनाश साधन हैं, ऐसा कहा जाता है ।” यह एकमात्र श्लोक कह कर आकाशवाणी मौन हो गयी और राजा धर्म वर्मा के बार बार पूछने पर भी आकाशवाणी ने उसका अर्थ (विस्तार) नहीं बताया । तब राजा धर्म वर्मा ने ढिढोरा पिटवा कर घोषणा की कि जो भी इस श्लोक की ठीक ठीक व्याख्या कर देगा उसे राजा सात लाख गाय, इतनी ही स्वर्ण मुद्रा तथा सात गाँव दिया जायेगा । कई ब्राह्मणों ने इस के लिए प्रयास किया पर कोई भी श्लोक की ठीक ठीक व्याख्या नहीं कर पाया । इस मुनादी को नारद जी ने भी सुना जो उन समय आश्रम बनाने के लिए पर्याप्त भूमि की तलाश में थे इस दुविधा में थे की वह दान में ली हुई भूमि और बिना राजा की भूमि पर आश्रम नहीं बनाना चाहते थे । वह केवल अपने द्वारा अर्जित भूमि पर ही आश
देवो के देव महादेव को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं, अतिशीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त की इच्छा पूर्ण करने वाले शिव शंकर को भोलेनाथ भी कहते है, तंत्राधिपति बाबा महाकाल की अनेक तांत्रिक मंत्रों द्वारा की जाने वाली साधना भी देव पूजा ही कहलाती हैं । तंत्र मंत्रों में से एक है शिव शाबर मन्त्र, तंत्र शास्त्र के अनुसार इस मंत्र की साधना से भगवान महाकाल शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, और अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते है ।