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फ़रवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शालिग्राम निर्णय

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  भगवान शालिग्राम श्री नारायण का साक्षात् और स्वयंभू स्वरुप माने जाते हैं। आश्चर्य की बात है की त्रिदेव में से दो भगवान शिव और विष्णु दोनों ने ही जगत के कल्याण के लिए पार्थिव रूप धारण किया। जिसप्रकार नर्मदा नदी में निकलने वाले पत्थर नर्मदेश्वर या बाण लिंग साक्षात् शिव स्वरुप माने जाते हैं और स्वयंभू होने के कारन उनकी किसी प्रकार प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती। ठीक उसी प्रकार शालिग्राम भी नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने, अंडाकार पत्थर को कहते हैं। स्वयंभू होने के कारण इनकी भी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और भक्त जन इन्हें घर अथवा मन्दिर में सीधे ही पूज सकते हैं। शालिग्राम भिन्न भिन्न रूपों में प्राप्त होते हैं कुछ मात्र अंडाकार होते हैं तो कुछ में एक छिद्र होता है तथा पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं। कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की गोल धारियां चक्र के समान होती हैं। दुर्लभ रूप से कभी कभी पीताभा युक्त शालिग्राम भी प्राप्त ह

शिव ध्यान मंत्र

ध्यानं   आपाताल-नभःस्थलान्त-भुवन-ब्रह्माण्ड-माविस्फुरत्- ज्यॊतिः स्फाटिक-लिङ्ग-मौलि-विलसत्-पूर्णॆन्दु-वान्तामृतैः । अस्तॊकाप्लुत-मॆक-मीश-मनिशं रुद्रानु-वाकाञ्जपन् ध्यायॆ-दीप्सित-सिद्धयॆ ध्रुवपदं विप्रॊ‌உभिषिञ्चॆ-च्चिवम् ॥ ब्रह्माण्ड व्याप्तदॆहा भसित हिमरुचा भासमाना भुजङ्गैः कण्ठॆ कालाः कपर्दाः कलित-शशिकला-श्चण्ड कॊदण्ड हस्ताः । त्र्यक्षा रुद्राक्षमालाः प्रकटितविभवाः शाम्भवा मूर्तिभॆदाः रुद्राः श्रीरुद्रसूक्त-प्रकटितविभवा नः प्रयच्चन्तु सौख्यम् ॥ ॐ ग॒णाना॓म् त्वा ग॒णप॑तिग्ं हवामहॆ क॒विं क॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम् । ज्यॆ॒ष्ठ॒राजं॒ ब्रह्म॑णां ब्रह्मणस्पद॒ आ नः॑ शृ॒ण्वन्नू॒तिभि॑स्सीद॒ साद॑नम् ॥ महागणपतयॆ॒ नमः ॥ शं च॑ मॆ॒ मय॑श्च मॆ प्रि॒यं च॑ मॆ‌உनुका॒मश्च॑ मॆ॒ काम॑श्च मॆ सौमनस॒श्च॑ मॆ भ॒द्रं च॑ मॆ॒ श्रॆय॑श्च मॆ॒ वस्य॑श्च मॆ॒ यश॑श्च मॆ॒ भग॑श्च मॆ॒ द्रवि॑णं च मॆ य॒न्ता च॑ मॆ ध॒र्ता च॑ मॆ॒ क्षॆम॑श्च मॆ॒ धृति॑श्च मॆ॒ विश्वं॑ च मॆ॒ मह॑श्च मॆ स॒ंविच्च॑ मॆ॒ ज्ञात्रं॑ च मॆ॒ सूश्च॑ मॆ प्र॒सूश्च॑ मॆ॒ सीरं॑ च मॆ ल॒यश्च॑ म ऋ॒तं च॑ मॆ॒‌உमृतं॑ च मॆ‌உय॒क्ष्मं च॒ मॆ‌உना॑मयच्च मॆ जी॒वातु॑श्च मॆ द

शिव ध्यानम

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों- ध्यानं आपाताल-नभःस्थलान्त-भुवन-ब्रह्माण्ड-माविस्फुरत्- ज्यॊतिः स्फाटिक-लिङ्ग-मौलि-विलसत्-पूर्णॆन्दु-वान्तामृतैः । अस्तॊकाप्लुत-मॆक-मीश-मनिशं रुद्रानु-वाकाञ्जपन् ध्यायॆ-दीप्सित-सिद्धयॆ ध्रुवपदं विप्रॊ‌உभिषिञ्चॆ-च्चिवम् ॥ ब्रह्माण्ड व्याप्तदॆहा भसित हिमरुचा भासमाना भुजङ्गैः कण्ठॆ कालाः कपर्दाः कलित-शशिकला-श्चण्ड कॊदण्ड हस्ताः । त्र्यक्षा रुद्राक्षमालाः प्रकटितविभवाः शाम्भवा मूर्तिभॆदाः रुद्राः श्रीरुद्रसूक्त-प्रकटितविभवा नः प्रयच्चन्तु सौख्यम् ॥ ॐ ग॒णाना॓म् त्वा ग॒णप॑तिग्ं हवामहॆ क॒विं क॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम् । ज्यॆ॒ष्ठ॒राजं॒ ब्रह्म॑णां ब्रह्मणस्पद॒ आ नः॑ शृ॒ण्वन्नू॒तिभि॑स्सीद॒ साद॑नम् ॥ महागणपतयॆ॒ नमः ॥ शं च॑ मॆ॒ मय॑श्च मॆ प्रि॒यं च॑ मॆ‌உनुका॒मश्च॑ मॆ॒ काम॑श्च मॆ सौमनस॒श्च॑ मॆ भ॒द्रं च॑ मॆ॒ श्रॆय॑श्च मॆ॒ वस्य॑श्च मॆ॒ यश॑श्च मॆ॒ भग॑श्च मॆ॒ द्रवि॑णं च मॆ य॒न्ता च॑ मॆ ध॒र्ता च॑ मॆ॒ क्षॆम॑श्च मॆ॒ धृति॑श्च मॆ॒ विश्वं॑ च मॆ॒ मह॑श्च मॆ स॒ंविच्च॑ मॆ॒ ज्ञात्रं॑ च मॆ॒ सूश्च॑ मॆ प्र

स्वप्न प्रेत बाधा युक्त

*कुलज प्रेतबाधाजन्य दीखनेवाले स्वप्न, उनके निराकरणके उपाय तथा नारायणबलिका विधान* (गरुड़ पुराण- धर्मकांड/ प्रेत कल्प /अध्याय २१ श्रीगरुडने कहा-हे भगवन् ! प्रेत किस प्रकारसे मुक्त होते हैं? जिनकी मुक्ति होनेपर मनुष्योंको प्रेतजन्य पीड़ा पुनः नहीं होती।  हे देव! जिन लक्षणोंसे युक्त बाधाको आपने प्रेतजन्य कहा है, उनकी मुक्ति कब सम्भव है?  और क्या किया जाय कि प्राणीको प्रेतत्वकी प्राप्ति न हो सके?  प्रेतत्व कितने वर्षोंका होता है? चिरकालसे प्रेतयोनिको भोग रहा प्राणी उससे किस प्रकार मुक्त हो सकता है?  यह सब आप बतलानेकी कृपा करें। . श्रीकृष्णने कहा-हे गरुड! प्रेत जिस प्रकार प्रेतयोनिसे मुक्त होते हैं, उसे मैं बतला रहा हूँ। जब मनुष्य यह जान ले कि प्रेत मुझको कष्ट दे रहा है तो ज्योतिर्विदोंसे इस विषयमें निवेदन करे। प्रेतग्रस्त प्राणीको बड़े ही अद्भुत स्वप्न दिखायी देते हैं। जब तीर्थ-स्नानकी बुद्धि होती है, चित्त धर्मपरायण हो जाता है और धार्मिक कृत्योंको करनेकी मनुष्यकी प्रवृत्ति होती है तब प्रेतबाधा उपस्थित होती है एवं उन पुण्य कार्योंको नष्ट करनेके लिये चित्त- भंग कर देती है। कल्याणकारी कार्योंम

सप्त स्वप्न विधि

सप्तविधस्वप्न दृष्टः श्रुतोऽनुभूतश्च प्रार्थितःकल्पितस्तथा । भाविको दोषजश्चैव स्वप्नः सप्तविधो विदुः॥३॥  अर्थ- तहाँ कहते है कि स्वप्न सात प्रकारका है । १ दृष्ट (जो दिनमें देखा हो उसीको रात्रिको स्वप्नमें देखे ) २. श्रुत (जो बात सुनी हो उसीको स्वप्नमें देखे) ३. अनुभूत ( जो बात जाग्रतअवस्थामें अनुभव करी हो उन्हीको स्वप्नमें देखे) ४.प्रार्थित (जो वस्तूको जाग्रतअवस्थामें इच्छा की हो उसीको स्वा देखना)५ कल्पित (जो दिनमें किसी वस्तुकी कल्पना करे। स्वममें देखे) ६ भाविक (जो दृष्टऋतसे विलक्षण देखे और को उसका वैसाही फल हो उसको भाविक जानना)७ दोष (अर्थात् पात पित्त कफ इनकी प्रकृतिके अनुसार स्वप्न दीखना। तंत्र पञ्चविधं पूर्वमफलं भिषगादिशेत् ।  दिवास्वप्नमतिह्रस्वमतिदीर्घ च बुद्धिमान् ॥ ४॥ दृष्टः प्रथमरात्रे यः स्वप्नः सोऽल्पफलो भवेत्। न स्वप्यादं पुनर्दृष्ट्वा स सद्यः स्यान्महाफलः।।५।। अर्थ-उन दृष्टादिक सात स्वप्नों में प्रथमके पांच स्वप्नों को निष्फल कहे । तथा दिनका स्वप्न एवं अति छोटा अथवा अत्यंत बड़ा स्वप्नको भी वैद्य निष्फल जाने और जो स्वप्न प्रथम रात्रि  में देखा हो वह अल्प फलको देताहै | जिस स्

पारद शिवलिंग

*💥पारदशिवलिंग पूजन का महत्त्व💥* वैदिक रीतियों में, पूजन विधि में, समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति में पारद से बने शिवलिंग एवं अन्य आकृतियों का विशेष महत्त्व होता है। पारद जिसे अंग्रेजी में एलम (Alum) भी कहते हैं , एक तरल पदार्थ होता है और इसे ठोस रूप में लाने के लिए विभिन्न अन्य धातुओं जैसे कि स्वर्ण, रजत, ताम्र सहित विभिन्न जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इसे बहुत उच्च तापमान पर पिघला कर स्वर्ण और ताम्र के साथ मिला कर, फिर उन्हें पिघला कर आकार दिया जाता है। पारद को भगवान् शिव का स्वरूप माना गया है और ब्रह्माण्ड को जन्म देने वाले उनके वीर्य का प्रतीक भी इसे माना जाता है। धातुओं में अगर पारद को शिव का स्वरूप माना गया है तो ताम्र को माँ पार्वती का स्वरूप। इन दोनों के समन्वय से शिव और शक्ति का सशक्त रूप उभर कर सामने आ जाता है। ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है। इसीलिए ऐसे शिवलिंग को "सुवर्ण रसलिंग" भी कहते हैं। पारद के इस लिंग की महिमा का वर्णन कई प्राचीन ग्रंथों में जैसे कि रूद्र संहिता, पारद संहिता, रस्मर्तण्ड ग्रन्थ,

स्वभाव श्लोक

  स्वभावः === सुभावश्च स्वभावो वा जनानां हि निधिर्महान्। संस्कारैश्च  सुभावो वै स्वभावो जन्मना हि वै।।  कारणरहितश्चैव प्रकृत्या जीवने तथा। स्वभावतस्तथा चैव  प्रवृत्तिर्जीवने यथा।। स्वभावश्च यथा चैव मनुष्याणां हि जीवने। वस्तूनां हि तथा चैव  सर्वत्रैव च सर्वदा।। अग्नेर्ननूष्णता चैव स्वच्छञ्च शीतलं जलम्। निश्चितो$स्ति प्रवाहश्च वायोर्हि दुष्करस्तथा।। आचारैः पितृभिश्चैव  नियमैः सर्वदा तथा। सुबुद्ध्या शिक्षया चैव सुभावैः संस्कृता जना:।। श्वानपुच्छं समं नैव स्वामिभक्तिश्च दुर्लभा।  वक्रदृष्टिर्हि कामिन्या: स्वाभाविकी च सर्वथा।। सर्वेभ्यश्च समा चैव सुरभिश्चन्दनस्य हि । छायया परितुष्यन्ति  सर्वान् वृक्षास्तु सर्वदा।। क्रोधेन वक्ति केचिद्धि शान्त्या वक्ति तथापरः। विवशाश्च स्वभावेन स्वभावो दुरतिक्रमः।। स्वाभाविकी गतिर्निम्ना मनसः सर्वथा सदा। कामिनीनाञ्च लज्जा तु लज्जाहीना नरा हि वै।।

भजन करते समय के नियम

भोजन करने के  सामान्य नियम   - १. सदैव शुद्ध होकर, आचमन करके ही भोजनालय ( रसोई)  में भोजनार्थ  प्रवेश करे । २.उत्तरीय ( दुपट्टा) और धोती पहने । ३. श्रीखंड चंदन आदि का तिलक लगा के भोजनालय में जाये । ४. भोजनालय  गोबर से लीपा हो  । ५. भोजन से पूर्व  ब्राह्मण चतुष्कोण ,  क्षत्रिय त्रिकोण , वैश्य गोल मण्डल व  शूद्र केवल जल से अभिषेक करे । ६.   #पितुन्नुस्तोषम्० इत्यादि मन्त्र से  पहले अन्न की स्तुति करे । ७.  पुनः मानस्तोके नमो वः०  मन्त्र से उस परोसे अन्न को अभिमन्त्रित करे । ८. फिर बलिवैश्वदेव यज्ञ  ( आहार का कुछ अंश मन्त्र के साथ बलि देना )  करे ।  ९.  फिर अन्तश्चरसि० मन्त्र से भगवान् विष्णु का ध्यान करे, फिर अमृतोपस्त० मन्त्र से आचमन करे । १०. फिर  अन्न में अमृत का ध्यान करके  अपने मुख में पॉच आहुतियॉ दे -  प्राणाय स्वाहेति मन्त्रों से ।(  वाजसनेयी शाखानुसार ) ११. ये  प्राणाहुतियॉ  दॉत से न काटे , वरन जीभ से चाट कर ही ग्रहण करे । १२. पहला कौर अंगुठे + मध्यमा , दूसरा मध्यमा+अनामिका, तीसरा कनिष्ठा+तर्जनी , चौथा अंगूठे के अतिरिक्त शेष चार , पॉचवा  पॉचों अंगुलियों से ग्रहण करे । १३. बॉये हा

विवाह के सात वचन

*🌹विवाह के 7 पवित्र वचन और महत्व🌹* 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 *⭕विवाह के समय पति-पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे को सात वचन देते हैं जिनका दांपत्य जीवन में काफी महत्व होता है। आज भी यदि इनके महत्व को समझ लिया जाता है तो वैवाहिक जीवन में आने वाली कई समस्याओं से निजात पाई जा सकती है।* *विवाह समय पति द्वारा पत्नी को दिए जाने वाले सात वचनों के महत्व को देखते हुए यहां उन वचनों के बारे में जानकारी दी जा रही है।*   *1. तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:।* *वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी ।।*   (यहां कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)   किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभा‍गिता व महत्व को स्पष्ट किया गया है। *

सोलह श्रृंगार

क्या होते है, सोलह श्रृंगार?????? सोलह श्रृंगार के बारें में ये सब नहीं जानते होंगे आप,आपको शायद जानकर आश्चर्य होगा कि सोलह शृंगार घर मे सुख और समृद्धि की लाने के लिए किया जाता है। शृंगार अगर पवित्रता और दिव्यता के हिसाब से किया जाए तो यह प्रेम और अहिंसा का सहायक बनकर समाज में सौम्यता और प्यार का वाहक बनता है। तभी तो भारतीय संस्कृति में सोलह शृंगार को जीवन का अहम और अभिन्न अंग माना गया है। ऋग्वेद में सौभाग्य के लिए किए जा रहे सोलह शृंगारों के बारे में बताया गया है। आईए जानते हैं श्रृंगार के बारे में कुछ रोचक तथ्य... पहला श्रृंगार: बिंदी : - संस्कृत भाषा के बिंदु शब्द से बिंदी की उत्पत्ति हुई है। भवों के बीच रंग या कुमकुम से लगाई जाने वाली भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है। सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी लगाना जरूरी समझती हैं। इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। दूसरा श्रृंगार, सिंदूर : - उत्तर भारत में लगभग सभी प्रांतों में सिंदूर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है और विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नी के मांग में सिंदूर भर कर जी

साधना पथ एवं उसके प्रधान अवयव

# साधना पथ एवं उसके प्रधान अवयव १. संकल्प (विनियोग) संकल्प ही साधना का मुख्य आधार होता है संकल्प ही वो पदार्थ या वस्तु है जिसकी प्राप्ति के लिए साधना की जाती है इसके अंग इसप्रकार हैं (क) स्थानः-- संकल्प लेतेसमय वो स्थान जो ब्रह्माण्ड मे जिस अक्षांश और देशांतर पर आप विद्यमान हैं। (ख)मुहूर्त :-- काल का वह अंश या भाग जो संकल्प के समय विद्यमान हो ये मुहूर्त ही है जो संकल्प को को सिद्ध होने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है अतः संयम पूर्वक इसका विचार करना चाहिए।  (ग)ऋषि:-- वह वैज्ञानिक महापुरुष या गुरु जिसके सिद्धांत से आप का संकल्प पूर्णता मे योगदान हो रहा हो  (घ)छंद:--ऋषि द्वारा निर्मित आप के संकल्प की सिद्धि हेतु की जाने वाली प्रार्थना की लय जो आप के संकल्प को आबद्ध करे । (डं)मंत्र:-- प्रार्थना के छंद  (लय)की सार ध्वनि  (च)शक्ति:--- शक्ति का तात्पर्य उस महाविद्या (क्रियाशक्ति) से है जिससे आप का संकल्प उत्पन्न हुआ है (छ) कीलकः--  ऐसी तिजोरी जिसमे संकल्प को रखना होता है जिससे आप का संकल्प विनष्ट न हो। (ज)प्रकार :--आप के संकल्प का हेतु अर्थात सकाम (अर्थ,काम,और,मोक्ष)या निष्काम(धर्म) (झ)जपः---

कुछ वैदिक प्रश्न उत्तर

आज निम्न प्रश्नों के उत्तर खोजते हैं।   (दो) ऋग्वेद कैसे विकृति से बच पाया? *ॐ -ऋग्वेद में आज तक एक अक्षर भी जोड़ा वा घटाया नहीं गया *. इस  विधानपर आज का युवा विश्वास नहीं  करता. एक युवा का प्रश्न और उसकी भूमिका से ही स्पष्ट है:   (तीन) प्रश्न मालिका: जब बाइबिल की अनेक गॉस्पेल्स मिलती हैं, तो उससे भी पुराना ऋग्वेद बिना छेडछाड रहा यह  हम  कैसे मान ले ? तब मुद्रण का शोध  ही कहाँ हुआ था? कागज़  का शोध  भी नहीं हुआ था। ताड पत्र या भोज पत्र पर लिखा जाता था। लिपि भी पता नहीं खोजी गयी थी या नहीं? ऐसे वेदों को बिना विकृति मान लेना क्या मूर्खता या  अंधश्रद्धा नहीं  है?   जब एक युवा ने  ऐसे  श्रेणी बद्ध प्रश्न पूछना प्रारंभ किए ,तो  मैं ही,  सोच में  पड गया. ऐसे प्रश्न भी हो सकते है. पर इन प्रश्नों का मैं पहली बार  सामना कर रहा था। भारत में भी  साम्यवादियों द्वारा ऐसे प्रश्न पूछनेवाले  मिले हैं; जो मैं उपेक्षित करते आ रहा था.   प्रश्न:(१)भाषा शुद्धि  और उच्चारण के प्रति  पूर्वज  कितने जागरूक थे? (कुछ काल्पनिक प्रश्नों को   विषय  निरूपण की सुविधा की दृष्टि से डाला है.)   उत्तर(१) भाषा शुद्धि और उच्

पित्र सूक्त

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  पितृ-सूक्त उदीरतामवर उत् परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः । असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु ॥ १ ॥ इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः । ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु ॥ २ ॥ आहंपितृन् त्सुविदत्रॉं अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः । बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठाः ॥ ३ ॥ बर्हिषदः पितर ऊत्यर्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम् । त आ गतावसा शंतमेनाऽथा नः शं योरऽपो दधात ॥ ४ ॥ उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु । त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान् ॥ ५ ॥ आच्या जानु दक्षिणतो निषद्येमं यज्ञमभि गृणीत विश्र्वे । मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरुषता कराम ॥ ६ ॥ आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्त्याय । पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्र यच्छत त इहोर्जं दधात ॥ ७ ॥      ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः । तेभिर्यमः संरराणो हवींष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु ॥ ८ ॥ ये त

पित्र स्तोत्र

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  पितृ स्तोत्र – Pitra Stotra अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् । नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।। इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा । सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।। मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा । तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ।। नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि:।। प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च । योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु । स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।। सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा । नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।। अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् । अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।। ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।। तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ

पित्र मंत्र

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  पितृ दोष निवारण ज्योतिष शास्त्र मैं कई पितृ दोष निवारण मंत्र बताये गए हैं पर सबसे उत्तम पितृ दोष निवारण मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मन्त्र बताया गया हैं . रोज १ माला इस मंत्र का जप करने से पितृ दोष निवारण होता हैं पितृ दोष निवारण मंत्र ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः उपरोक्त पितर दोष निवारण मंत्र का पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ कम से कम १ माला रोज जाप करे पितृ दोष निवारण  होगा।।                                        सम्पूर्ण---🖌              ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● आप हमारे अन्य प्रसारण माध्यम से जुड़ सकते है , 📡 ब्लॉग Aachary Rudreswaran  👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻       http://mangalamshiva.blogspot.com/?m=1 📡 टेलीग्राम 👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼 https://t.me/AacharyRudreshwaran   📡  शिव सायुज्य 👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 https://t.me/shivsayujy 📡 व्हाट्सअप 👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻 आचार्य रुद

महादेवाराधान

।। महादेवाराधन ।। स्कन्द पुराण मे महादेव आराधना के अनेको प्रकार बताये गये हैं । मुख्यत: महादेव दर्शन के तीन उपाय कहे गये हैं :- - श्रद्धापूर्वक ज्ञान , तपस्या और योग । मनसा ( मन - बुद्धि से ) , वाचा ( वाणी से ) और कर्मणा ( क्रिया से ) - महादेव की सर्वोत्तम आराधना कही गयी है । मानसिक , वाचिक और कायिक के अतिरिक्त लौकिकी , वैदिकी , और आध्यात्मिक भक्ति के ये तीन प्रकार कहे गये हैं । ( १ ) मानसिक भक्ति - ध्यान , धारणा , बुद्धि द्वारा महादेव के स्वरूप का स्मरण । ( २ ) वाचिक भक्ति - स्तुति , कीर्तन , मंगलाचरण के द्वारा की गयी भक्ति । ( ३ ) कायिक भक्ति - व्रत , स्नान , यम , नियम , आदि । - गौ दुग्ध , घृत , दधि , माल्य , सुगंधि , चन्दन , नृत्य , वाद्य , भोज्य , अक्षत , आदि पदार्थों द्वारा की गयी भक्ति ' लौकिक भक्ति ' कही गयी है । - वेदमन्त्रो से हविष्यान्न , आहुति आदि से की गयी यजन क्रिया ' वैदिक भक्ति ' कही गयी है । - यौगिक एवं सांख्यिकी ये दो प्रकार आध्यात्मिक भक्ति के प्रकार हैं । प्राणायाम , इन्द्रिय संयम , यम-योगादि यौगिक तथा साँख्य मतानुसार महादेव के स्वरूप का चिंतन ' आ

शिव नैवेद्य निर्णय 2

हरि: ओम्, शिवनैवेद्य भक्षण निर्णय आज महाशिवरात्रि के पुण्य अवसर पर शिवनैवेद्य भक्षण सम्बन्धि विचार प्रस्तुत करते हैं। पूर्वकाल में ऋषियों को भी शिवनैवेद्य भक्षण सम्बन्धि शङ्का हुई थी तो सूतजी ने उसका निवारण किया था। ऋषयः ऊचुः अग्राह्यं शिवनैवेद्यमिति पूर्वं श्रुतं वचः ब्रूहि तन्निर्णयं बिल्वमाहात्म्यमपि सन्मुने।। १ ।। ​ऋषिगणों ने कहा — हमने सुना है ​कि शिवनैवेद्य अग्राह्य है। अत: हे मुने! उस नैवेद्य के विषय में निर्णय तथा बिल्व महात्म्य के विषय में आप ही हमें कुछ बतायें। सूत जी ने जो निर्णय दिया था उसमे जो मुख्य बातें कही वह यह है।  यद्गृहे शिवनैवेद्यप्रचारोपि प्रजायते तद्गृहं पावनं सर्वमन्यपावनकारणम्।। ६ ।। जिस घर शिव नैवेद्य पहुंच जाता है वह घर भी महापवित्र है एवं वह दूसरे घर को भी महापवित्र करने में समर्थ होता है। अर्थात उस घर की पवित्रता से आस पास के घर भी पवित्र हो जाते हैं।  आगतं शिवनैवेद्यं गृहीत्वा शिरसा मुदा भक्षणीयं प्रयत्नेन शिवस्मरणपूर्वकम्।। ७ ।। शिव के नैवेद्य को आया देखकर उसे शिर पर धारण करना चाहिए तथा परम प्रसन्नता से शिव का स्मरण करते हुए प्रयत्न पूर्वक उसका भक्षण करना

शिव नैवेद्य निर्णय

*श्रीशिवनिर्माल्य-निर्णय*  शिवनैवेद्य के विषय में शिवपुराणादि ग्रन्थों में विस्तार से निरूपण है, इसके पूर्व अनेक विशिष्ट विद्वान् भी विचार कर इस विषय में शास्त्रीय सिद्धान्त प्रकाशित कर चुके हैं तथापि कुछ लोग शास्त्रीय सिद्धान्त की अनभिज्ञता के कारण इस विषय में भ्रम में पड़े रहते हैं, इसलिये इस सम्बन्ध में यहाँ कुछ विचार किया जा रहा है। |  *शिवनैवेद्य-ग्रहण की प्रशंसा* शिवपुराण - विद्येश्वरसंहिता के 22 वें अध्याय में शिव - नैवेद्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है - *दृष्ट्वापि शिवनैवेद्यं यान्ति पापानि दूरतः।* *भुक्ते तु शिवनैवेद्ये पुण्यान्यायान्ति कोटिशः।।* *अलं यागसहस्रेणाप्यलं यागार्बुदैरपि।* *भक्षिते शिवनैवेद्ये शिवसायुज्यमाप्नुयात्।।* *आगतं शिवनैवेद्यं गृहीत्वा शिरसा मुदा।* *भक्षणीयं प्रयत्नेन शिवस्मरणपूर्वकम्।।* *न यस्य शिवनैवेद्यग्रहणेच्छा प्रजायते।* *स पापिष्ठो गरिष्ठः स्यान्नरके यात्यपि ध्रुवम्।।* *शिवदीक्षाऽन्वितो भक्तो महाप्रसादसंज्ञकम्।* *सर्वेषामपि लिङ्गानां नैवेद्यं भक्षयेच्छुभम्।।* | (शि. पु. विद्ये. सं. 22/4-5, 7, 9, 8) अर्थात् - शिव के नैवेद्य को देख लेनेमात्र से भी सारे प

समुद्र मंथन या आत्म मंथन

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों------ || समुन्द्र मंथन या आत्म मंथन || हिन्दु धर्म की शिक्षाओं को ऋषि मुनियों ने अपने अपने हिसाब से कथाओं में घड कर वेद पूराणों में लिखा है लेकिन आज के मूर्ख नास्तिक लोग कथाओं के शब्दों को लेकर तर्क करना शूरू कर देते हैं शब्दों और कथाओं का अर्थ नहीं समझते सागर मंथन की कथा का अर्थ समझिऐ...... समुद्र मंथन हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं में देव-दानवों द्वारा किया गया समुद्र मंथन का प्रसंग खासतौर पर सागर से निकले अद्भुत व बेशकीमती खजाने यानी दिव्य रत्नों, प्राणियों व देवताओं के अलावा खासतौर पर भगवान विष्णु द्वारा देवताओं को अमृत पान कराने के लिए जाना जाता है। दरअसल, हजारों सालों से यह प्रसंग केवल धार्मिक नजरिए से ही नहीं बल्कि इसमें समाए जीवन को साधने वाले सूत्रों के लिए भी अहमियत रखता है।  आज भी कई धर्म परंपराएं इसी प्रसंग से जुड़े कई पहलुओं के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। महाकुंभ में उमड़ता जलसैलाब हो या धन कामना के लिए लक्ष्मी पूजा, सभी के सूत्र समुद्र की गहराई से निकले इन अनमोल रत्नों व उनमें समाए प्

वरुण सूक्त

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  !!!---: वरुण-सूक्त :---!!! ==================== वरुण-सूक्त (ऋग्वेदः---१.२५) ऋग्वेद में प्रथम मण्डल का २५ वाँ सूक्त हैः--वरुण सूक्त, वरुण-सूक्त में कुल कितने मन्त्र हैः---११ वरुण-सूक्त का ऋषि है---शुनः शेप । वरुण-सूक्त का देवता हैः--वरुण देव । वरुण शब्द की उत्पत्तिः---वृञ् वरणे धातु से वरणीयः । वृञ् धातु का अर्थ है-ः--आच्छादित करना या आवृत्त करना । वरुण का निर्वचन हैः--वरुणो वृणोतीति सतः । वरुण-सूक्त का छन्द हैः---गायत्री (२४ अक्षर) । वरुण देवता का स्थान हैः---द्युलोक । भौतिक नियमों का नियन्ता कौन हैः--वरुण । वरुण का एक अन्य नाम हैः---धृतव्रत । सूर्य, अग्नि और जल की रचना किसने की हैः---वरुण ने । "उत्तम-शासक" किसे कहा गया हैः---वरुण को ।। वरुण का नेत्र हैः--सूर्य । सूर्य की तरह ही किसका रथ देदीप्यमान हैः---वरुण का । वरुण का प्रमुख अस्त्र क्या हैः---"वज्र" और "पाश" ।। वरुण का प्रधान कार्य क्या हैः---जल बरसाना ।। ब्रह्माण्ड का नैतिक अध्यक्ष कौन हैः--वरुण ।। वरुण जि