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समस्त पाप निवारण स्तोत्र

* समस्तपाप निवारण स्तोत्र * पुष्करोवाच विष्णवे विष्णवे नित्यं विष्णवे विष्णवे नमः । नमामि विष्णुं चित स्थमहंकारगतिं हरिम् ॥ चित्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराजितम् । विष्णुमीडयमशेषेण अनादिनिधनं विभुम् ।। विष्णुश्चित्तगतो यन्मे विष्णुर्बुद्धिगतश्च यत् । यच्चाहंकारगो विष्णुर्यव्दिष्णुमॅयि संस्थितः ॥ करोति कर्मभूतोऽसौ स्थावरस्य चरस्य च । तत् पापं नाशमायातु तस्मिन्नेव हि चिन्तिते ॥ ध्यातो हरति यत् पापं स्वप्ने दृष्टस्तु भावनात् । तमुपेन्द्रमहं विष्णुं प्राणतातिॅहरं हरिम् ॥ जगत्यस्मिन्निराधारे मज्जमाने तमस्यधः । हस्तावलम्बनं विष्णुं प्रणमामि परात्परम् ॥ सर्वेश्वरेश्वर विभो परमात्मन्नधोक्षज । हृषीकेश हृषीकेश हृषीकेश नमोऽस्तु ते ॥ नृसिंहानन्त गोविंद भूतभावन केशव । दुरुक्तं दुष्कृतं ध्यातं शमयाधं नमोऽस्तु ते ॥ यन्मया चिन्तितं दुष्टं स्वचित्तवशवर्तिना । अकार्यँ महदत्युग्रं तच्छ्मं नय केशव ॥ ब्रह्मण्यदेव गोविंद परमार्थपरायण । जगन्नाथ जगध्दतः पापं प्रश्मयाच्युत ॥ यथापरह्मे सायाह्मे मध्याह्मे च तथा निशि । कायेन मनसा वाचा कृतं पापमजानता ॥ जानता च हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष माधव । नामत्र

ब्राह्मण बंशवाली

ब्राह्मण वंशावली (गोत्र प्रवर परिचय) ब्राह्मण वंशावली (गोत्र प्रवर परिचय) 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। ईसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में हैं। एक अन्य मत के अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री राम ने भोजन ओर दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया

अष्ट नाग

✍🏻 *आस्तीकपर्वणि - सर्पनामकथने पञ्चत्रिंशोऽध्यायः* ✍🏻 👉🏻 *भाग-१.३६.२* _*(मुख्य-मुख्य नागोंके नाम)*_ *शेषः प्रथमतो जातो वासुकिस्तदनन्तरम् ।* *ऐरावतस्तक्षकश्च कर्कोटकधनंजयौ ॥* *कालियो मणिनागश्च नागश्चापूरणस्तथा ।* *नागस्तथा पिञ्जरक एलापत्रोऽथ वामनः ॥* *नीलानीलो तथा नागौ कल्माषशबलौ तथा।* *आर्यकश्चोग्रकश्चैव नागः कलशपोतकः ॥* *सुमनाख्यो दधिमुखस्तथा विमलपिण्डकः ।* *आप्तः कर्कोटकश्चैव शङ्खो वालिशिखस्तथा ॥* *निष्टानको हेमगुहो नहुषः पिङ्गलस्तथा।* *बाह्यकर्णो हस्तिपदस्तथा मुद्रपिण्डकः ॥* *कम्बलाश्वतरौ चापि नागः कालीयकस्तथा।* *वृत्तसंवर्तको नागौ द्वौ च पद्माविति श्रुतौ ॥* नागोंमें सबसे पहले शेषजी प्रकट हुए हैं। तदनन्तर वासुकि, ऐरावत, तक्षक,कर्कोटक, धनंजय,कालिय, मणिनाग,आपूरण, पिञ्जरक, एलापत्र, वामन, नील, अनील, कल्माष, शबल, आर्यक, उग्रक, कलशपोतक, सुमनाख्य, दधिमुख, विमलपिण्डक, आप्त, कर्कोटक (द्वितीय), शङ्ख, वालिशिख, निष्टानक, हेमगुह, नहुष, पिङ्गल, बाह्यकर्ण, हस्तिपद, मुद्गरपिण्डक, कम्बल, अश्वतर, कालीयक, वृत्त, संवर्तक, पद्म (प्रथम), पद्म (द्वितीय) ॥ ५-१० ॥

स्त्रियों को कथा कहने का अधिकार विमर्श

भागवत धर्म में सर्वाधिकार लगभग २००० वर्षों की पराधीनता के बाद राजनैतिक रूप से १५ अगस्त, १९४७ को स्वतन्त्र हो जाने के बाद भी सांस्कृतिक रूप से अपनों की ही पराधीनता से मुक्त होने की तो कोई सम्भावना भी दिखाई नहीं दे रही है । आज इस देश के संकीर्ण विचारकों के द्वारा जो देश व संस्कृति का संकुचन हुआ और अनवरत हो रहा है, वह तो विधर्मी आक्रान्ताओं के द्वारा लाखों वर्षों तक यहाँ लूट-पाट, तोड़-फोड़, कत्लेआम किये जाने पर भी नहीं हो सकता था । विशेषतः आज धर्म के नगाड़े बजाने वाले ही भगवद्वाणी, भगवद्‌रूपा आचार्यों की वाणी को सर्वथा भूल गये हैं । भूल गये कि भगवान् श्रीरामके वन-वनान्तर-भ्रमण का कारण केवट, शबरी एवं जटायु पर कृपा करना ही था । इस वन भ्रमण का उद्देश्य असुरों का वध नहीं था क्योंकि यह तो मात्र उनकी संकल्प शक्ति से भी हो सकता था । पुनः कलिकाल में श्री रामानन्दाचार्य जी के रूप में महान विद्वानों की भूमि “काशी” में उद्घोष किया – सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणः सदा शक्ता अशक्ता अपि नित्यरङ्गिणः ।अपेक्ष्यते तत्र कुलं बलं च नो न चापि कालो नहि शुद्धता च ॥ (वैष्णव मताब्ज भास्कर) संसार में सबको भगवद्‌शरणागति का