अधर्मेणैधते तावत्ततो भद्राणि पश्यति । ततः सपत्नान्जयति समूलस्तु विनश्यति । । जो पाप करता है वह पहले आर्थिक समृद्धि का प्राप्त करता हुआ प्रतीत होता है। उसके बाद बन्धु बान्धवों में मान सम्मान आदि भी दिखते हैं एवं कल्याणाभास भी प्रतीत होता है। वह अपने शत्रुओं को भी जीतता है किन्तु अन्त में पाप उसका जड सहित नाश कर देता है। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि नाधर्मश्चरितो लोके सद्यः फलति गौरिव । शनैरावर्त्यमानस्तु कर्तुर्मूलानि कृन्तति । । क्योंकि किया गया पापकर्म तत्काल फल नहीं देता है। इस संसार में जैसे गाय की सेवा का फल दूध आदि शीघ्र प्राप्त नहीं होता वैसे ही किये हुए अधर्म का फल भी शीघ्र नहीं होता। किन्तु धीरे – धीरे घुमता हुआ यह पाप फल पापकर्म कर्ता की जडों को काट देता है। न सीदन्नपि धर्मेण मनोऽधर्मे निवेशयेत् । अधार्मिकानां पापानां आशु पश्यन्विपर्ययम् । । किया गया पापकर्म कर्ता पर इस जन्म में न दीखे तो अगले जन्म मे दिखेगा। इस जन्म में उसके पुत्रों पर नहीं तो पौत्रों पर फल देगा पर यह निष्फल नहीं जायेगा ये निश्चित है। आज आपके द्वारा ईश्वरकृत सनातनी वर्णव्यवस्था के विरूद्ध किया गया अधर्माचरण
देवो के देव महादेव को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं, अतिशीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त की इच्छा पूर्ण करने वाले शिव शंकर को भोलेनाथ भी कहते है, तंत्राधिपति बाबा महाकाल की अनेक तांत्रिक मंत्रों द्वारा की जाने वाली साधना भी देव पूजा ही कहलाती हैं । तंत्र मंत्रों में से एक है शिव शाबर मन्त्र, तंत्र शास्त्र के अनुसार इस मंत्र की साधना से भगवान महाकाल शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, और अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेते है ।