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दुर्गा 32 नाम प्रयोग

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  माता भवानी के आगमन की बहुत बहुत शुभकामनाएं । आज एक महत्वपूर्ण विधान प्रेषित कर रहा हु आशा है कि अवश्य ही यह लाभान्वित करेगा। ।। हर इक्षा हर की ।। ऊँ  दुर्गा दुर्गतिशमनी दुर्गाद्विनिवारिणी दुर्गमच्छेदनी  दुर्गसाधिनी  दुर्गनाशिनी दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा  दुर्गमज्ञानदा  दुर्गदैत्यलोकदवानला दुर्गमा दुर्गमालोका  दुर्गमात्मस्वरुपिणी  दुर्गमार्गप्रदा दुर्गम विद्या दुर्गमाश्रिता  दुर्गमज्ञान संस्थाना  दुर्गमध्यान भासिनी दुर्गमोहा दुर्गमगा  दुर्गमार्थस्वरुपिणी दुर्गमासुर  संहंत्रि दुर्गमायुध धारिणी दुर्गमांगी  दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी  दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गमो दुर्गदारिणी  नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम  मानवः पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न  संशयः। विधान :  पहले एक पाठ कीजिये, अब दूसरा पाठ दुसरे नाम से आरम्भ कीजिये और पहले नाम पर समाप्त कीजिये !  तीसरा पाठ तीसरे नाम से प्रारंभ करके दुसरे पर समाप्त कीजिये ! ऐसे ही क्रम से पाठ करते जाइये! अर्थात बत्तीसवा पाठ बत्तीसवे नाम

अष्टमूर्ति स्तोत्रं

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  ॥ अष्टमूर्तिस्तोत्रम् ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ईशा वास्यमिदं सर्वं चक्षोः सूर्यो अजायत । इति श्रुतिरुवाचातो महादेवः परावरः ॥ १॥ अष्टमूर्तेरसौ सूर्यौ मूर्तित्वं परिकल्पितः । नेत्रत्रिलोचनस्यैकमसौ सूर्यस्तदाश्रितः ॥ २॥ यस्य भासा सर्वमिदं विभातीदि श्रुतेरिमे । तमेव भान्तमीशानमनुभान्ति खगादयः ॥ ३॥ ईशानः सर्वविद्यानां भूतानां चेति च श्रुतेः । वेदादीनामप्यधीशः स ब्रह्मा कैर्न पूज्यते ॥ ४॥ यस्य संहारकाले तु न किञ्चिदवशिष्यते । सृष्टिकाले पुनः सर्वं स एकः सृजति प्रभुः ॥ ५॥ सूर्याचद्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् । इति श्रुतेर्महादेवः श्रेष्ठोऽर्यः सकलाश्रितः ॥ ६॥ विश्वं भूतं भवद्भयं सर्वं रुद्रात्मकं श्रुतम् । मृत्युञ्जयस्तारकोऽतः स यज्ञस्य प्रसाधनः ॥ ७॥ विषमाक्षोऽपि समदृक् सशिवोऽपि शिवः स च । वृषसंस्थोऽध्यतिवृषो गुणात्माऽप्यगुगुणोऽमलः ॥ ८॥ यदाज्ञामुद्वहन्त्यत्र शिरसा सासुराः सुराः । अभ्रं वातो वर्षं इतीषवो यस्य स विश्वपाः ॥ ९॥ भिषक्रमं त्वा भिषजां शृणोमीति श्रुतेरवम् । स्वभक्तसंसारमहारोगहर्ताऽपि शङ्करः ॥ १०

आध्यात्मिक विचार

●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●         ❗❗ *आचार्य रुद्रेश्वरन* ❗❗ ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬● 👉🏻 प्रिय पाठकों-------  “समान रंग के (एक से) पंखवालि कोयलों में हिलेमिले कौए को कौन पहचानता यदि वह स्वयं काँव-काँव न कर बैठता॥६६॥तुल्यवर्णच्छदै: कृष्ण: संगतै: किल कोकिलै:। केन विज्ञायते काक: स्वयं यदि न भाषते ॥६६॥” <<<वि०श्वकाककोकिलान्योक्ति व०वासिष्ठ रा०नि०उ-११६।भाग ६ >>> कहीं पर नदी के किनारे निर्माल्य, अक्षत आदि खाने के लिए शिवलिंग के ऊपर काँव-काँव कर रहे कौवे को देखकर कोई अनुचर उसके काँव-काँव करने के आशय की उत्प्रेक्षा करता है। लिङ्ग्स्योर्ध्वं रटत्काक आत्मानं दर्शयत्ययम्। सर्वाध:पातकोत्तुङ्गगतं पश्यत मामिति॥६२॥ शिवलिंग के ऊपर काँव-काँव करता हुआ कौवा अपने को दृष्टान्तरुप से दर्शा रहा है, हे लोगों, अधोगति के हेतुभूत सब पातकों में से शिवस्वभक्षण के लिए शिवलिंग के आश्रयरुप सर्वोत्कृष्ट पातक को प्रप्त हुए प्रत्यक्ष काकरुप मुझे देखो॥६२॥ दूसरा अनुचर तालाब में काँव करते हुए घूम रहे कौए के प्रति कहता है। काकक कटुकल्कारव कबलितगुणकर्दमे भ्रमन्सरसि।अन्तरयसि मधुपरवं यदतो मे शिरसि फलभूत:॥६३॥ अरे निन्द्य क