||ब्राह्मणत्व तथा दान ग्रहण के दोष|| (क) एक समय की बात है, शंकराचार्य को मार्ग अवरुद्ध किए एक प्रेत ने दर्शन दिया। परिचय और उद्देश्य पूछने पर उस प्रेत ने कहा कि एक प्रतापी राजा द्वारा ब्रह्महत्या- दोष- निवारणार्थ प्रचुर धन- सामग्री का प्रायश्चित-दान-ग्रहण हेतु योग्य ब्राह्मण की खोज हो रही थी, किन्तु पाप-भय से कोई योग्य ग्रहणकर्ता मिल नहीं रहा था । घोर दारिद्रदुःख से पीड़ित एक ब्राह्मण यह सोच कर आगे आया कि दारिद्रदुःख से बड़ा और दुःख क्या हो सकता है ! अतुलनीय धन-सम्पदा प्राप्त करने के पश्चात् कोई उपाय कर लिया जायेगा । यह व्यर्थ हुआ जा रहा मानव जीवन तो सार्थक हो जायेगा सम्पत्ति पाकर। किन्तु भोगैश्वर्य में वह ऐसा लिप्त हुआ कि मृत्यु कब ग्रस ली पता भी न चला। प्रायश्चित-दान-ग्रहण-दोष ने महापिशाच योनि में डाल दिया। मैं वही पिशाच हूँ । कृपया आप मेरा उद्धार करें । शंकराचार्य ने ध्यानस्थ होकर विचार किया । किन्तु तत्काल कोई ठोस उपाय न सूझा, जो उसे प्रेतत्व से मुक्ति प्रदान कर सके । अनन्तः उन्होंने एक पिटारी की व्यवस्था की और उस प्रेत को उसमें स्थान ग्रहण करने को कहा । प्रेत ने उनकी आज्ञा क
☀️ *सर्वमनोकामनाओं के सिद्धिदाता श्री सूर्यदेव की उपासना* ☀️ मानव संस्कृति के चलन में आने के बाद से ही धर्मशास्त्रों के आधार पर मनुष्य का जीवन अग्रसरित होता रहा है। यह कहने का अभिप्राय यह है कि हमारा देश धर्म प्रधान है और धर्म के बिना जीवन व्यर्थ है। इस संसार में आप लोग जहाँ तक देखेंगे यही पायेंगे कि संसार के सभी लोग चाहे वह ईसाई हों, मुस्लिम हों, सिख हों, जैन हों, बौध हो अपने अपने धर्म के प्रति समर्पित है। मतलब स्पष्ट है कि धर्म का महत्व अपरमित है। यहाँ पर मैं महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कहे गये एक श्लोक का वर्णन करना आवश्यक समझता हूँ .... धर्मेण हन्यते व्यधि, धर्मेण हन्यते ग्रह: । धर्मेण हन्यते शत्रुर्यतोधर्मस्ततो जय: ।। अर्थात धर्म में इतनी शक्ति है कि धर्म सभी व्याधियों का हरण कर आपको सुखमय जीवन प्रदान कर सकता है । धर्म इतना शक्तिशाली है कि वह सभी ग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर कर सकता है । धर्म ही आपके सभी शत्रुओं का हरण कर उनपर आपको विजय दिला सकता है । अत: इसी प्रयास में आज आप लोगों को अपने शास्त्रों व ज्योतिषशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण साध